entrepreneurship meaning in hindi उद्यमिता का क्या अर्थ है

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entrepreneurship meaning in hindi उद्यमिता का क्या अर्थ है

उद्यमी—अर्थ, अवधारणा एवं स्वरूप

(Entrepreneur-Meaning, Concept, and Forms)

“उद्यमी उस व्यक्ति अथवा विभिन्न व्यक्तियों के समूह को कहा जाता है जो किसी व्यवसाय की कल्पना करते हैं, उसकी स्थापना के लिये आवश्यक संसाधनों को जुटाते हैं तथा उस व्यवसाय के संचालन की जोखिमों को उठाते हुए, उसका प्रबन्ध, समन्वय एवं नियन्त्रण करते हैं।”

शीर्षक >

  • विषय परिचय (Introduction)
  • उद्यमी शब्द का उद्भव (Evolution of the word Entrepreneur)
  • उद्यमी का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Entrepreneur)
  • उद्यमी की विशेषताएँ (Characteristics of Entrepreneur)
  • उद्यमी के गुण (Qualities of an Entrepreneur)
  • उद्यमकर्ताओं के विभिन्न स्वरूप अथवा उद्यमियों के प्रकार (Different forms of Entrepreneurs or Various Types of Entrepreneur)
  • उद्यमी की अवधारणा (The Concept of Entrepreneur)
  • उद्यमी के कार्य (Functions of Entrepreneur)
  • उद्यमी तथा प्रबन्धक में अन्तर (Difference between Entrepreneur and Managers)
  • उद्यमी बनाम प्रबन्धक-एक अध्ययन (Entrepreneur Vs. Manager-A study)
  • उद्यमी तथा पूँजीपति में अन्तर (Difference between Entrepreneur and Capitalist)
  • उद्यमी तथा संगठनकर्ता में अन्तर (Difference between Entrepreneur and Organiser)
  • उद्यमी तथा श्रमिक में अन्तर (Difference between Entrepreneur and Labourers)
  • उद्यम का महत्व (Importance of Entrepreneur)
  • क्या उद्यमी जन्मजात होते हैं ? (Are Entrepreneur born ?)
  • उद्यमी तथा आन्तरिक उद्यमी में अन्तर (Difference between Entrepreneur and Entrepreneur)

Entrepreneur Meaning Concept Forms

विषय परिचय

(Introduction)

आधुनिक युग औद्योगिक युग है। व्यापक व सम्पूर्ण औद्योगीकरण के बिना कोई भी देश उन्नति नहीं कर सकता। सम्पूर्ण विश्व में जनसंख्या अबाधगति से निरन्तर बढ़ रही है और भारत में तो स्थिति और भी खराब है। यहाँ नित्य बढ़ती आबादी से उत्पन्न बेरोजगारी की समस्या विकट रूप धारण कर रही है, और इस समस्या का केवल एक ही हल है, देश का सम्पूर्ण औद्योगीकरण।।

इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये सारे देश में, देश के हर हिस्से में, छोटे और बड़े दोनों प्रकार के उद्योगों का एक जाल-सा बिछाने । की नीति अपनाई जा रही है जिससे कि देश के सभी भागों में समान रूप से औद्योगिक प्रगति हो, उद्योगों का नवीनीकरण तथा। विकास हो, आम जनता को इससे लाभ मिले तथा औद्योगिक प्रगति देश के अर्थ-तन्त्र के लिये एक सुदृढ़ आलम्बन बन सके। इसी ध्येय को ध्यान में रखते हये सभी ग्रामीण क्षेत्रों में, पिछड़े इलाकों में तथा दूरदराज के ऐसे मैदानों व पहाड़ी भागों में जहाँ । अभी तक औद्योगिक विकास नहीं हो सका है, वहाँ छोटे, बड़े उद्योगों, लघु उद्योगों-धन्धों की स्थापना पर विशेष बल दिया जा। रहा है।

ऐसे पिछड़े तथा अविकसित क्षेत्रों में क्योंकि अनुकूल औद्योगिक वातावरण का अभाव होता है, इसलिए किसी नये व्यक्ति के द्वारा ऐसे स्थानों पर उद्योग-धन्धे स्थापित करने या किसी अन्य उद्योग व्यवसाय को प्रारम्भ करने में अदम्य साहस एवं उद्यमशीलता या उद्यमिता की आवश्यकता होती है। औद्योगिक क्षेत्र न होने से उसे प्रारम्भ में अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ उठानी पड़ सकती हैं; जैसे कच्चे माल का अभाव या तैयार माल की बिक्री न होना इत्यादि।

देश के समस्त भागों में औद्योगिक वातावरण उपलब्ध हो सके, इसके लिये प्रशासन द्वारा विशेष प्रयास किये जा रहे हैं, वृहद् राजकीय प्रतिष्ठानों तथा फर्मों की स्थापना की जा रही है जिससे वहाँ नये, अनुभवहीन व्यक्ति छोटे उद्योग लगाने का साहस कर सकें। यद्यपि बड़े-बड़े पूँजीपतियों तथा उद्योगपतियों को इस दिशा में विशेष रूप से प्रोत्साहन दिया जा रहा है, परन्तु सरकार की.मूल नीति लघु व कुटीर उद्योग-धन्धों को ही बढ़वा देने की तथा उनके विकास की राह प्रशस्त करने की है, जिससे कि पूँजी का केन्द्रीयकरण रोका जा सके तथा पूँजीपतियों के प्रभुत्व को कम किया जा सके, अधिक-से-अधिक व्यक्तियों को अपना स्वयं रोजगार या व्यवसाय मिल सके। वे भी श्रमिक के स्थान पर उद्योगपति बन सके। इस प्रकार बेरोजगारी की समस्या का कुछ हल निकल सकेगा, ऐसी आशा की जानी चाहिए।

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उद्यमी शब्द का उद्भव

(Evolution of the Word Entrepreneur)

उद्यमी शब्द का उद्गम फ्रेंच भाषा के शब्द ‘एण्ट्रीपेण्ड्री’ (Entrependre) से हुआ है, जिसका अर्थ है नए व्यवसाय के जोखिम को वहन करना (undertook the risk of enterprise)। इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 16वीं शताब्दी में फ्रांस में प्रमुख अभियानों (Expenditions) के लिए श्री रिचार्ड केण्टीलोन (Richard Cantillon) ने अपने लेखन कार्य में किया था। उन्होंने उद्यमी का वर्णन एक ऐसे व्यक्ति के रूप में किया था जो किसी उत्पाद को बेचने के लिये उसके मूल्य का भुगतान करता है। अतएव ऐसा व्यक्ति ऐसी वस्तु को प्राप्त करने के लिये संसाधनों का जोखिम उठाता है। उसके अनुसार चतुर उद्यमी वाणिज्यिक लाभ के लिये सदैव संसाधनों के उपयोग के लिए श्रेष्ठ अवसरों की खोज में रहता है।

कुछ विद्वानों के अनुसार ‘उद्यमी’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले फ्रांस में 16वीं शताब्दी में फौजी अभियानों (Military Expenditions) में किया गया था। 17वीं शताब्दी में इस शब्द का प्रयोग अन्य साहसिक कार्यों में मुख्य रूप से नागरिक अभियान्त्रिकी के क्षेत्र में, सड़कों, पुलों, बन्दरगाहों तथा भवनों के निर्माण के क्षेत्र में किया गया था एवं 18वीं शताब्दी में आर्थिक क्रियाओं के सम्बन्ध में किया जाने लगा, परन्तु 200 वर्ष पूर्व जे. बी. से. (J. B. Say) द्वारा विकसित किए गए शब्द उद्यमी (Entrepreneur) के बारे में पूर्ण भ्रांति बनी हुई है।

अमेरिका में प्रायः उद्यमी उस व्यक्ति को माना जाता है जो अपना स्वयं का नया व्यवसाय प्रारम्भ करता है, जबकि जर्मनी में उद्यमी उस व्यक्ति को कहा जाता है जिसके पास सत्ता एवं सम्पत्ति अधिक मात्रा में होती है। वर्तमान में आर्थर कोल का यह कथन बिल्कुल सत्य प्रतीत होता है कि उद्यमी का अध्ययन करना आर्थिक क्रियाओं में भख्य पात्र का अध्ययन करना है। एक उद्यमी वास्तव में समाज का सच्चा नायक एवं आर्थिक एवं सामाजिक परिवर्तनों का अग्रदत (Harbinger) माना जाने । लगा है। किसी देश की व्यावसायिक सफलता का निर्धारण उद्यमियों द्वारा नव-प्रवर्तन (Innovation) से लेकर रचनात्मक कार्यों के आधार पर ही होती है। उद्यमी को भावी समाज का आधार या स्वप्न द्रष्टा कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। वर्तमान में विश्व स्तर पर फोर्ड, रॉकफेलर, कारनेगी, वाटसन, मोरगेन, किसलर, टाटा, बिड़ला, जिन्दल, डालमिया, धीरू भाई अबानी आदि उद्यमियों के कारण ही इनकी संस्थाओं के नाम प्रचलित हुए हैं।

यद्यपि विभिन्न विद्वानों ने उद्यमी को विभिन्न नामों से पुकारा है तथापि उद्यमी का अर्थ जोखिम उठाने वाला (Risk bearer), प्रवर्तक (Promoter) यानि कि उपक्रम की स्थापना करने वाला स्वामी (Owner) या प्रबन्धक (Manager), सगठनकत्ता। (Organiser) या समन्वयकर्त्ता (Co-ordinator) से लगाया जाता रहा है, परन्तु वर्तमान में उद्यमी को नवप्रवर्तक (Innovator), तथा उद्योग एवं व्यावसायिक जगत् का आर्थिक अगुआ (Economic Leader) कहा है।

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उद्यमी का  अर्थ (Meaning of Entrepreneur)

उद्यमी एक जड़ एवं मृतक अर्थव्यवस्था में नई ऊर्जा का संचार करता है। वर्षों से निरन्तर घाटे पर चल रहे उद्योगों की पन: स्थापना करता है, उसमे नवाचार (Innovation), नियोजन (Planning) तथा कुशल प्रबन्ध (Efficient Management) का संचार करता है और अन्तत: उसे लाभप्रद (Profitable) इकाई के रूप में परिवर्तित करता है। विद्वान अर्थशास्त्री मार्शल (Marshall) के अनुसार, “उद्यमी उद्योग का कप्तान होता है क्योंकि वह जोखिम एवं निश्चितता का केवल वाहक ही नहीं होता वरन् एक प्रबन्धक, भविष्यद्रष्टा, नई उत्पादक विधियों का आविष्कारक (Innovator) एवं किसी देश के आर्थिक ढाँचे का निर्माता/आविष्कारक भी होता है।” सरल भाषा में उद्यमी से आशय ऐसे व्यक्ति से है जो किसी नवीन उपक्रम की स्थापना करने का जोखिम उठाता है, आवश्यक संसाधन एकत्रित करता है (जैसे—मानव शक्ति, सामग्री एवं पूँजी आदि) तथा उसका प्रबन्ध एवं नियन्त्रण करता है। यद्यपि जोखिम उठाना उद्यमी का प्राथमिक कार्य है किन्तु आधुनिक युग में उसे और भी कार्य सम्पन्न करने पड़ते हैं; जैसे—नेतृत्व, सृजनात्मक तथा नवाचार सम्बन्धी कार्य।

उद्यमी की परिभाषाएँ (Definitions of Entrepreneur)

उद्यमिता (Entrepreneurship) एक अस्पष्ट अवधारणा है जिसके कारण भिन्न-भिन्न विद्वानों ने उद्यमी की अपने-अपने की दृष्टिकोण से अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं—मिचेल पामर (Michael Palmer) के अनुसार, “उद्यमी शब्द में परिभाषात्मक यं एवं क्रियात्मक अस्पष्टता की भरमार है और यही कारण है कि जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था का स्वरूप बदलता गया वैसे-वैसे उद्यमी ल की परिभाषा भी बदलती गई। विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं के अनुसार उद्यमी की परिभाषाओं को निम्न रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है

उद्यमी की परिभाषायें

परम्परागत अर्थव्यवस्था में (In Traditional Economy)

विकासशील अर्थव्यवस्था में (In Developing Economy)

विकसित अर्थव्यवस्था में In Developing Economy)

समन्वित दृष्टिकोण (Synthesised Approach)

 (i) परम्परागत अर्थव्यवस्था में (In Traditional Economy)

परम्परागत अर्थव्यवस्था में उद्यमी को जोखिम वहनकर्ता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। कोई भी व्यक्ति जो व्यावसायिक जोखिम वहन करता है, उद्यमी की श्रेणी में आता है। इस दृष्टिकोण से कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

(1) परम्परागत अर्थशास्त्री श्री जे. बी. से (J. B. Say) के अनुसार, “उद्यमी वह व्यक्ति है जो आर्थिक संसाधनों को उत्पादकता एवं लाभ के क्षेत्रों से उच्च क्षेत्रों की ओर हस्तान्तरित करता है।”1

(2) रिचर्ड केण्टीलोन (Richard Cantillon) के अनुसार, “उद्यमी वह व्यक्ति है जो किसी उत्पाद को अनिश्चित मूल्य पर बेचने के लिए निश्चित धनराशि देता है और तद्नुसार उसे प्राप्त करने एवं साधनों का उपयोग करने का निर्णय लेता है।” 2 |

(3) एफ. एच. नाइट (F. H. Knight) के अनुसार, “उद्यमी विशिष्ट व्यक्तियों का वह समूह है जो जोखिम उठाते हैं और अनिश्चितता का सामना करते हैं।’3

(4) एफ. वी. हेने (F. V. Hane) के अनुसार, “उत्पत्ति में निहित जोखिम उठाने वाला साधन ही उद्यमी है।” ।

(5) ब्रिटेनियाँशब्दकोश के अनुसार, “उद्यमी एक व्यक्ति है जो भावी अनिश्चितताओं के मध्य किसी व्यवसाय के संचाल का जोखिम उठाता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं में उद्यमी को किसी व्यवसाय की अनिश्चितताओं एवं जोखिमों का सामना करने वाले व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है। जोखिम उठाने वाले व्यक्ति के रूप में उद्यमी की पहचान आज भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। जोखिम होने पर ही उद्यमी की पहचान होती है। यद्यपि जोखिम वहनकर्ता के रूप में उद्यमी की पहचान आज भी महत्वपूर्ण है, पर है वर्तमान में जोखिमों की प्रकृति बदल चुकी है, लेकिन फिर भी एक उद्यमी को सरकारी नीतियों, नवप्रवर्तक, ग्राहक की रुचियाँ ए टेक्नोलॉजी, प्रतिस्पर्धा एवं बाजार प्रवृत्तियों आदि से उत्पन्न होने वाली जोखिमों को झेलना पड़ता है। परम्परागत अर्थव्यवस्थ के अनुसार, अर्थशास्त्रियों ने उद्यमी को अवैयक्तिक रूप से स्वयं एक फर्म के रूप में प्रस्तुत किया है। इसलिए यह परिभाषा साहसी व्यक्तित्व के केवल एक पहलू को ही व्यक्त करती हैं।

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(II) विकासशील अर्थव्यवस्था में (In Developing Economy)

भारत जैसे विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों में उद्यमी को एक प्रवर्तक (Promoter), संगठनकर्ता (Organiser एवं समन्वयकर्ता (Co-ordinator) के रूप में परिभाषित किया गया है। इस विचारधारा के अनुसार, उद्यमी वह व्यक्ति य जिसके मस्तिष्क में किसी व्यवसाय अथवा उद्योग की स्थापना का विचार उत्पन्न होता है और उसे व्यावहारिक रूप देने के ( लिये वह आवश्यक संसाधन (जैसे—मानव-शक्ति, सामग्री तथा पूँजी) एकत्रित करता है एवं उसकी स्थापना का जोखिम उठाता है। जो व्यक्ति यह कार्य सम्पन्न करता है, वही उद्यमी कहलाता है। विकासशील अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में उद्यमी की कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

(1) जैम्स बर्नर (James Burner) के अनुसार, “उद्यमी वह व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह है जो किसी नये उपक्रम की स्थापना के लिए उत्तरदायी होता है।”1.

(2) ऑक्सफोर्ड आंग्ल शब्दकोश (Oxford English Dictionary) के अनुसार, “उद्यमी वह व्यक्ति अथवा विशेषतः – अनुबन्धकर्ता है जो किसी उपक्रम की स्थापना करता है तथा जो पूँजी व श्रम के बीच मध्यस्थ का कार्य करता है।”2

(3) अल्फ्रेड मार्शल (Alfred Marshall) के शब्दों में, “उद्यमी वह व्यक्ति है जो जोखिम उठाने का साहस करत है; जो किसी कार्य के लिये आवश्यक पूँजी एवं श्रम की व्यवस्था करता है; जो इसकी सामान्य योजना बनाता है तथा जो उसक सूक्ष्म बातों का निरीक्षण करता है।”3

(4) गेराल्ड ए. सिल्वर (Gerald A. Silver) के शब्दों में, “उद्यमी वह व्यक्ति है जो किसी नई वस्तु या सेवा वै । विचार की कल्पना करता है और फिर उस वस्तु या सेवा का उत्पादन करने के लिए एक व्यवसाय की स्थापना हेत पूँजी प्राप्ति के स्रोत की खोज करता है।”

(5) वालरस (Walras) के अनुसार, “उद्यमी वह अभिकर्ता है जो दूसरे व्यवसायियों से कच्चा माल, भूमिपतियों से भूमि श्रमिकों से अभिरुचियाँ, पूँजीपति से पूँजीगत माल खरीदता है, उत्पादकों को बेचता है जो कि इनके सहयोग अथवा संयोजन अथवा सेवाओं का परिणाम है।”5

(6) आर. टी. इली (R. T. Ely) के अनुसार, “उद्यमी वह व्यक्ति है जो उत्पादक घटक को संगठित एवं निर्देशित करत है।”

(7) काल मैंगर (KarIMenger) के अनुसार, “उद्यमी परिवर्तन लाने वाला प्रतिनिधि है जो संसाधनों को उपयोगी माल एवं सेवाओं में परिवर्तित करता है और इस प्रकार औद्योगिक विकास की परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं में उद्यमी को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जिसके मस्तिष्क में सबसे पहले a किसी व्यवसाय अथवा उद्यम की स्थापना का विचार उत्पन्न होता है, उसकी स्थापना के लिए आवश्यक संसाधनों को जटाता है; जैसे मानव शक्ति, सामग्री, यन्त्र, पूँजी, तकनीक आदि एकत्रित करता है, जोखिम उठाता है और उसका प्रबन्ध, समन्वय नमें, एवं नियन्त्रण करता है।

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(III) विकसित अर्थव्यवस्था में (In Developed Economy)

विकसित अर्थवस्था में उद्यमी का कार्य अत्यन्त विशिष्ट, व्यापक एवं जटिल है और वह एक पेशेवर व्यक्ति का रूप ६ । पारण कर लेता है। प्रबन्ध विशेषज्ञ श्री पीटर एफ. ड्रकर (Peter F. Drucker) ने उद्यमी को एक नव-प्रवर्तक एवं सामाजिक नायक की भूमिका निभाने वाले व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया है। विकसित अर्थव्यवस्था में उद्यमी नव-प्रवर्तक एवं सामाजिक  leader) के रूप में अपनी भूमिका का निवाह करता है। नव-प्रवर्तनों को जन्म देता है, नवीन वस्तु, तकनीक यन्त्र, प्रणालियों एवं बाजारों की खोज करके व्यावसायिक अवसरों का लाभ उठाता है। इसलिए उद्यमी को सामाजिक नव-प्रवर्तक = (Social Innovator) भी कहा जाता है। इस दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने वाली परिभाषाएँ निम्न हैं—

(1) पीटर एफ. ड्रकर (Peter F. Drucker) के अनुसार, “उद्यमी सदैव परिवर्तन की खोज करता है, उस पर अनुक्रिया करता है और एक अवसर के रूप में उसका विदोहन करता है।”

(2) हर्बटन ईवान्स (Herbton Evans) के अनुसार, “उद्यमी वह व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह है जो संचालित किये जाने वाले व्यवसाय के निर्धारण का कार्य करता है।”

(3) फोरेस्ट फ्रेन्ज (Forest Frantz) के अनुसार, “उद्यमी प्रबन्धक से बड़ा होता है। वह नवप्रवर्तक तथा प्रवर्तक दोनों है।”3

(4) जोसेफ ए. शुम्पीटर (Joseph A. Schumpeter) के अनुसार, “उद्यमी वह व्यक्ति है जो किसी अवसर की पूर्व कल्पना करता है और किसी नवीन उत्पाद, नवीन उत्पादन विधि नये बाजार, नये कच्चे माल के स्रोत अथवा उत्पादन घटकों का नया संयोजन करता है।”

शुम्पीटर की यह परिभाषा उद्यमी को एक गतिशील भूमिका प्रदान करती है। शुम्पीटर ने अपने इस कथन को आगे चलकर निम्न शब्दों में अधिक स्पष्ट करने का प्रयास किया है। उनके अनुसार, “उद्यमी एक ऐसा व्यक्ति है, जो नवाचार करता है, धन एकत्रित करता है, संसाधन एकत्रित करता है, निपुणता को संगठित करता है नेतृत्व प्रदान करता है तथा संगठन की रचना करता है।”5

(5) राव एवं मेहता (Rao and Mehta) के अनुसार, “उद्यमी पर्यावरण का सृजनात्मक एवं नवाचार का प्रत्युत्तर है।”

(6) रॉर्बट रोन्सटैण्ड (Robert Ronstand) के अनुसार, “उद्यमिता अनगिनत धन निर्मित करने की गत्यात्मक प्रक्रिया है।”

(7) एच. डब्ल्यू. जॉनसन (H. W. Johnson) के अनुसार, “उद्यमी तीन आधारभूत तत्वों का योग है—(i) अन्वेषण, (ii) नवाचार एवं (iii) अनुकूलन।’

उद्यमी की उपयुक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के उपरान्त सरल शब्दों में उद्यमी की परिभाषा निम्न शब्दों में दी जा। सकता है उडामा वह व्यक्ति है जो व्यवसाय में लाभप्रद अवसारों की खोज करता है. संसाधनों (मानवशक्ति), तकनाक सामी एवं पूँजी आदि को एकत्रित करता है, नवाचार को जन्म देता है, जोखिम वहन करता है तथा अपने चातुर्य एवं तेज दृष्टि से असाधारण परिस्थितियों का सामना करता है एवं लाभ कमाता है।”

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समन्वित दृष्टिकोण (Synthesised Approach)

विभिन्न देशों में अधिक विकास के स्तर के अनसार उद्यमी का अर्थ एवं परिभाषा बदलती रहती है। प्रतिफल दर, उत्पादन संसाधनों, पूँजी की मात्रा, बाजार, उत्पादन तकनीक.विनियोग दर प्रतिस्पर्धा, आय स्तर, राजकीय दृष्टिकोण, सामाजिक-सांस्कृतिका मूल्यों, आदि की दृष्टि से विभिन्न राष्टों में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। इसलिए ‘उद्यमी’ की विचारधारा विभिन्न देशों के आर्थिक सामाजिक व तकनीकी घटकों के अनसार बदलती रहती है। आधुनिक युग में उद्यमी का कार्य क्षेत्र एवं दायित्व अत्यन्त व्यापक हो गया है। उद्यमी के मूलभूत तत्वों को तीन रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है

(1) जोखिम वहन करना (Risk bearing);

(2) साधनों का संगठन करना (Organising); एवं

(3) नव प्रवर्तन करना (Innovating)।

अन्तत: यह कहा जा सकता है कि उद्यमी वह व्यक्ति है जो व्यवसाय में लाभप्रद अवसरों की खोज करता है, आर्थिक संसाधनों को संयोजित करता है, नवकरणों को जन्म देता है तथा उपक्रम में निहित विभिन्न जोखिमों एवं अनिश्चितताओं का उचित प्रबन्ध करता है।

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उद्यमी की विशेषताएँ

(Characteristics of Entrepreneur)

प्रत्येक उद्योगपति को उद्यमी की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। अत: यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि उद्यमियों में क्या लक्षण तथा विशेषतायें होनी आवश्यक हैं ? किस प्रकार अन्य उद्योगपतियों से उद्यमियों को पृथक किया जा सकता है? किन लक्षणों तथा विशिष्टताओं के आधार पर किसी को औद्योगिक उद्यमी माना जा सकता है ? उद्योग विभाग उद्यमी की मान्यता किन्हें प्रदान कर सकता है तथा उद्यमियों के लिये जिन विशेष सुविधाओं, रियायतों, छूट, अनुदानों इत्यादि का प्रावधान है, वह किन व्यक्तियों को प्राप्त हो सकती है?

एक उद्यमी के अनुसार वे लक्षण जो किसी व्यक्ति को उद्यमी की श्रेणी में लाते हैं, निम्नलिखित हैं

1 उद्योग की नवीनता,

2. औद्योगिक स्थल, एवं

3. नये प्रवेश।

विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं के विश्लेषण के आधार पर उद्यमी की विशेषताओं को निम्न बिन्दुओं के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

(1) जोखिम वहनकर्ता (Risk Bearer)-उद्यमी व्यक्ति सदैव जोखिमों में ही जीना पसन्द करते हैं, परन्तु इनके द्वारा लिए नए जोखिम सदैव सुविचारित होते हैं। इस सम्बन्ध में लारेन्स लेमण्ट ने लिखा है कि “जोखिम वहन के प्रति झुकाव ही उद्यमी व्यक्तित्व का वास्तविक लक्षण है।” व्यवसाय में निहित विभिन्न जोखिमों का उपयुक्त पूर्वानुमान लगाना कठिन होता है। इसलिए उद्यमी सदैव अपनी विवेकपूर्ण योजनाओं एवं ठोस निर्णयों से जोखिम का सामना करते हैं, परन्तु उद्यमी सदैव सामान्य जोखिम को ही प्राथमिकता देते हैं।

(2) व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह (An Individual or Group of Individuals) लघु अथवा छोट। यवसायों में एक व्यक्ति ही उद्यमी कहलाता है, जबकि बड़े-बड़े निगमों एवं कम्पनियों में केवल एक व्यक्ति इस भूमिका का निर्वहन नहीं कर सकता है। इसलिए ऐसे व्यवसायों में कुछ समान विचारों वाले व्यक्तियों का समूह उद्यमी की भूमिका निभाता है।

(3) नवीन उपक्रम की स्थापना (Establishes New Undertaking) उत्पादन एवं वितरण का कार्य विकासशाल सालों में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होता है, क्योंकि वहाँ उत्पादन सीमित होता है। ऐसी परिस्थितियों में उद्यमी केवल साधना का एकीकरण ही नहीं करता है बल्कि नए उपक्रमों की स्थापना भी करता है तथा औद्योगिक क्रियाओं को विस्तृत रूप प्रदान करता है।

(4) साधन प्रदान करने वाला (Provider of Resources) अविकसित राष्टों में उत्पत्ति के साधनों का एकीकरण करना एक कठिन कार्य होता है, परन्तु उद्यमी उपक्रम को स्थापना के लिए सभी आवश्यक साधनों की व्यवस्था करता है तथा आवश्यक सूचनाएँ एवं तकनीक भी उपलब्ध कराता है। कुछ परिस्थितियों में उद्यमी स्वयं साधनयुक्त होता है, किन्तु बड़े व्यवसायों की स्थापना के लिए उद्यमी सरकार व विभिन्न संस्थाओं के सहयोग से साधनों की व्यवस्था करता है।

(5) कार्य ही लक्ष्य एवं सन्तुष्टि (Work is Object and Satisfaction) उद्यमियों के लिए उनका कार्य ही अपने आप में लक्ष्य एवं सन्तुष्टि का बड़ा स्रोत होता है। उद्यमी आत्म सन्तुष्टि को अधिक प्राथमिक उद्देश्य मानते हैं, जबकि मौद्रिक लाभों को गौण मानते हैं। इसलिए कहा जाता है कि “उद्यमियों के लिये कार्य ही उनकी प्रेरणा एवं पूँजी होती है।”

(6)अवसरों का विदोहन (Exploitation of Opportunities)-उद्यमी के अन्दर सदैव एक ‘सृजनात्मक असन्तोष’ (Creative dissatisfaction) छिपा रहता है जिसके द्वारा वह नए-नए व्यावसायिक अवसरों की खोज करता है तथा उनका विदोहन करके लाभ अर्जित करता है। उद्यमी चुनौतियों को अवसरों की भाँति स्वीकार करता है।

(7) नव-प्रवर्तनकर्ता (Innovator) उद्यमी अपने उपक्रमों में सदैव नवीन परिवर्तनों एवं सुधारों को जन्म देते हैं। उद्यमी नई वस्तु, नई उत्पादन विधि, नए यन्त्र, नए कच्चे माल तथा नए बाजारों की खोज करते हैं। नव प्रवर्तन से सम्बन्धित शुम्पीटर द्वारा प्रतिपादित दृष्टिकोण को निम्न ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है

New Quality of Product

Innovation                                                New Product

Introduces                                       New Sources of Materials

New Market

New Organisation Structure

(8) आशावादी दृष्टिकोण (Optimistic Outlook)—उद्यमी व्यक्तियों का दृष्टिकोण सदैव आशावादी होता है। यह अपने कार्य को भाग्य पर छोड़ने के बजाय अपने श्रम व नीति से सफलता प्राप्त करने में विश्वास करता है और न ही हानियों की दशा में निराश होता है। यह अपने मार्ग में आने वाली बाधाओं से विचलित नहीं होता है और सब कुछ गंवाने के बाद भी आशा नहीं छोड़ता है। यही आशावादी दृष्टिकोण उसके व्यावसायिक उद्देश्यों को पूरा करने में सहायक होता है।

(9) गतिशील प्रतिनिधि (Dynamic Agent)—किसी भी राष्ट्र के विकास का मापन वहाँ के उद्यमियों की सफलता पर निर्भर करता है, क्योंकि उद्यमी ही वह व्यक्ति होता है जो अपने ज्ञान एवं नीतियों के द्वारा व्यवसाय में सफल परिवर्तन करके सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को गतिशील बना देता है, क्योंकि उद्यमियों के अभाव में उत्पादन के साधन केवल साधन ही बने रहते हैं उनसे उपयोग की वस्तुओं का सृजन नहीं हो पाता है। शुम्पीटर ने कहा है, “उद्यमी का कार्य सजनात्मक विनाश करना है; (his task is creative destruction)।” क्योंकि वह पुरानी वस्तुओं (उत्पादक वस्तुओं) का विनाश करके नई वस्तुओं (उपयोगिता की वस्तुओं) की रचना करता है।

(10) स्वतन्त्रता प्रेमी (Freedom Lovers) उद्यमी व्यक्तियों का स्वभाव स्वतन्त्र प्रकृति का होता है। वे प्रत्येक कार्य को अपने ढंग से करने में ज्यादा विश्वास रखते हैं तथा साहसिक कार्यों को करने में ज्यादा तत्परता दिखाते हैं एवं उनमें पहल करने का गुण सदैव विद्यमान रहता है। इसलिए उनको स्वतन्त्रता प्रेमी कहा जाता है।

(11) उच्च उपलब्धियाँ (High Achievers) उद्यमी सदैव कछ असम्भव प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं तथा समाज में अलग पहचान बनाना चाहते हैं। इसलिए उद्यमी सदैव कठोर परिश्रम एवं दढ संकल्प के द्वारा उच्च प्राप्तियों में विश्वास रखते हैं।

(12) प्रबन्धक साहसा (Managerial Entrepreneur)-बड़े उपक्रमों में उद्यमी एवं प्रबन्धक अलग-अलग होते हैं। कभी-कभी प्रवर्तक उद्यमी संचालक मण्डल के सदस्य बनकर उच्च प्रबन्धक के रूप में भी कार्य करते हैं। आधुनिक व्यवसाय में ‘बहु उद्यमी’, ‘संयुक्त उद्यमी’ व ‘समूह उद्यमी’ की धारणा महत्त्वपूर्ण होती जा रही है।

(13) पेशेवर प्रकृति (Professional Nature) प्राचीन समय की यह मान्यता है कि ‘उद्यमी बनाए नहीं जाते हैं. बल्कि जन्म लेते हैं वर्तमान में गलत सिद्ध हो चुकी है, क्योंकि अब यह सिद्ध हो चुका है कि उद्यमी पैदा नहीं होते हैं बल्कि व्यावसायिक ज्ञान, प्रशिक्षण सुविधाओं एवं अन्य प्रेरणाओं के द्वारा उन्हें पेशेवर बनाया जाता है। वर्तमान में कई संस्थाएँ इस कार्य को कर रही हैं। ‘पेशेवर बनाए जाते हैं के सम्बन्ध में अमेरिकन सोसायटी ऑफ मैनेजमेन्ट के चेयरमैन (Chairman of American Society of Management) ने कहा है, “कि हम कोई वस्तु नहीं बनाते हैं। हम पेशेवर बनाते हैं और पेशेवर। वस्तु बनाते हैं।” (We don’t make a product, we make a professional and professional make a product)।

(14) विश्वासाश्रित सम्बन्ध (Fiduciary Relationship) वर्तमान युग में उद्यमी समाज के संसाधनों के प्रन्यासी (Trustees) होते हैं। आधुनिक युग निगम संस्कृति (Corporate Culture) का युग है, जिसके अन्तर्गत उद्यमी बड़ी-बड़ी। कम्पनियों व निगमों की स्थापना करते हैं एवं ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त के आधार पर इनका संचालन करते हैं। अत: उद्यमी के न केवल उपक्रम बल्कि सम्पूर्ण समाज के साथ विश्वासाश्रित सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं।

(15) पूँजीपति एवं विनियोजक से भिन्न (Different from Capitalist and Investors)-उद्यमी पूँजीपति एवं विनियोजक से भिन्न होता है। यद्यपि पूँजीपति एवं विनियोजक उस व्यक्ति को माना जाता है जो व्यवसाय के लिए पूँजी की व्यवस्था करता है व उसमें निवेश करता है पूँजीपति व विनियोजकों का एक मुख्य उद्देश्य लाभ के साथ-साथ सामाजिक एवं अन्य उद्देश्यों को पूरा करना है। अतः पूँजीपति व विनियोजकों को उद्यमी से अलग माना गया है। इस सम्बन्ध में पीटर एफ. डुकर (Peter F. Drucker) ने कहा है, “कि उद्यमी विनियोजक नहीं होता है। यद्यपि हो सकता है, किन्तु यह अक्सर कर्मचारी होता है अथवा वह अकेला तथा पूर्णतः स्वयं ही कार्य करता है।”

(16) नेतृत्वकर्ता (Leader)—उद्यमी व्यावसायिक जगत् का अग्रगामी होता है। यह केवल व्यवसाय एवं उद्योग को नेतृत्व प्रदान करने के साथ-साथ समाज को भी एक गतिशील दिशा प्रदान करता है। यह समाज में व्यक्तियों की आवश्यकताओं का पता लगाकर एवं उसके अनुरूप उत्पादन करके उद्योग, व्यवसाय व अर्थव्यवस्था को विकास के पथ पर गति प्रदान करता है।

(17) अनुसन्धान पर बल (Emphasis on Research) आधुनिक उद्यमियों की कार्यशैली परम्परागत विधियों को छोड़कर तथ्यों व सूचनाओं पर आधारित होती है। आधुनिक उद्यमी वैज्ञानिक शोध एवं अनुसन्धान पर बल देते हैं एवं सदैव प्रयोग व परिवर्तन में विश्वास करते हैं। वर्तमान में उद्यमियों की कार्य प्रणाली वैज्ञानिक एवं तर्कसंगत है।

(18) कार्य में पूर्ण समर्पित (Dedicated to their Job) उद्यमी अपने कार्य के प्रति सदैव पूर्ण समर्पित रहते हैं। उद्यमी में अपने लक्ष्य के प्रति तन्मयता, एकाग्रता एवं वचनबद्धता होती है। उद्यमी चुपचाप बिना विचलित हुए सदैव अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते हैं।

(19) प्रतिफल लाभ है (Profit is Reward)—सामान्यत: उद्यमी लाभ की आशा में ही कार्य करता है, परन्तु आध गुनिक युग में अमौद्रिक प्रेरणाओं की दृष्टि से भी कार्य करते हैं। उद्यमी को अपनी विभिन्न प्रकार की सेवाओं के फलस्वरूप लाभ के रूप में प्रतिफल प्राप्त होता है, जो सदैव अनिश्चित एवं जोखिम से परिपूर्ण होता है।

(20) एक संस्था (An Institution) उद्यमी स्वयं में एक संस्था है, क्योंकि यह विभिन्न संस्थाओं को जन्म देता है। आज विकासशील देशों में अनेक संस्थाएँ उद्यमी के रूप में कार्य कर रही हैं। यहाँ तक कि सरकार स्वयं एक उद्यमी बनकर राष्ट्र के औद्योगिक विकास में योगदान करती है।

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उद्यमी के गुण

(Qualities of an Entrepreneur)

आर्थिक प्रगति को उन्नत करने के लिए उद्यमियों का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। आज के यग में सभी प्रगतिशील देशों में इस प्रश्न-चिह्न पर, कि वास्तव में उद्यमी कौन है, विशेष ध्यान दिया जा रहा है। क्या एक उद्यमी. आर्थिक नीति अथवा प्रशिक्षण अथवा मार्गदर्शन द्वारा विकसित किया जा सकता है ? पहचान करने के उद्देश्य से तथा प्रगति के लिए यह आवश्यक हो जाता। है कि उद्यमी के गुणों के बारे में स्पष्ट तस्वीर की जानकारी हो। पीटर कलबे के अनसार एक उद्यमी की परिभाषा इस प्रकार। की गई है “उद्यमी एक खोजी जानवर की तरह है जिसकी ओर समाजशास्त्रियों. दार्शनिकों एवं अर्थशास्त्रियों का ध्यान आकाषत। रहता है।” समाजशास्त्री उद्यमी के गुणों को जाति, परिवार, सामाजिक स्तर, प्रतिष्ठा, प्रवास इत्यादि के रूप में मानते हैं। मनविज्ञानिक इसे आम जनता से अलग लेकर उसके उद्देश्य प्राप्ति के व्यक्तिगत गण जैसे उद्देश्य प्राप्ति की इच्छा, स्वयं उत्पादकता, जोखिम उठाने की क्षमता, स्वतन्त्रता तथा नेतृत्व को मानते हैं। अर्थशास्त्री इसे परिस्थितियोंवश गणों में जैसे व्यावसायिक स्थिति, धन की ओर पहुँच तथा व्यवसाय एवं तकनीकी अनुभव पर आधारित कहते हैं। लेकिन प्रायः अर्थशास्त्री इसे प्रबन्ध कौशल की ओर केन्द्रित करते हैं, जिससे एक व्यक्ति को आर्थिक लाभ लेने का अधिक अवसर मिलता है। उद्यमी में कुछ व्यक्तिगत गुण विद्यमान होते हैं जो उसके व्यवहार को प्रभावित करते हैं। नि:सन्देह वह एक समाज में रहता है तथा आर्थिक अवसर एवं लाभ उसे प्रभावित । करते हैं।

इमर्सन का कथन है कि,”व्यवसाय चातुर्य का खेल है जिसे प्रत्येक व्यक्ति नहीं खेल सकता।” (Business isagame of skill which everybody cannot play) जिस प्रकार एक व्यक्ति अपने आत्मविश्वास, मूल्यों, भावनाओं, प्रेरणाओं, दष्टिकोणों के द्वारा अपनी कल्पनाओं को साकार करता है, उसी प्रकार एक सफल उद्यमी भी मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, चारित्रिक एवं व्यावसायिक गुणों तथा योग्यताओं से व्यवसाय व उद्योग में उच्च उपलब्धियों को प्राप्त कर सकता है। इसलिए मेरेडिथ तथा नेल्सन (Meredith and Nelson) ने कहा है, “जब विभिन्न व्यक्तिगत विशेषताओं एवं योग्यताओं के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है तो उद्यमी, गैर-उद्यमी (Non-entrepreneurs) व्यक्तियों से महत्वपूर्ण रूप से भिन्न होते हैं।” उद्योग एवं व्यवसाय के प्रवर्तन, नवप्रवर्तन, जोखिम वहन व तीव्र विकास के लिए उद्यमी में कुछ पूर्वापेक्षित व्यक्तिगत गुण एवं योग्यताओं का होना अपरिहार्य है।

राष्टपति रूजवेल्ट (President Rossevelt) ने कहा था, “व्यक्तिगत योग्यता व्यवसाय के संचालन में अतिविशिष्ट घटक है। व्यवसाय का आकार छोटा हो या बड़ा व्यक्ति की योग्यता के द्वारा ही उसकी विफलता एवं सफलता की खाई को भरा जा सकता है।”

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क्रिस्टोफर के अनुसार-उद्यमी में निम्न अठारह गुण होते हैं

1 सुविचारित जोखिम उठाता है।

2. कठोर परिश्रमी तथा सतत प्रयत्नशील रहता है।

3. सदैव लाभ का इच्छुक होता है तथा कमाये लाभ में ही सन्तुष्ट होकर नहीं बैठ जाता है।

4. चुनौतीपूर्ण कार्यों को हाथ में लेकर सन्तुष्ट होता है तथा प्रसन्नता अनुभव करता है।

5. सदैव नई चीज सीखने का इच्छुक रहता है तथा हीनभावना के दोष से मुक्त रहता है।

6. शक्ति से पूर्ण तथा नई खोज व बदलाव को पहचानने वाला होता है।

7. परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढाल लेता है।

8. नयी पद्धति के चलन (Innovative) में विश्वास रखता है।

9. वह एक अच्छा विक्रेता होता है तथा भली-भाँति जानता है कि किस प्रकार मित्रों को जीता जा सकता है तथा लोगों पर प्रभाव डाला जा सकता है।

10. कठिन परिस्थितियों (crisis) का मुकाबला करना अग्रसर होना भली-भाँति जानता है।

11. आत्मविश्वास व इच्छा शक्ति से भरपूर होता है।

12. अपनी सफलता का पक्का इरादा रखता है।

13. चतुर एवं प्रसन्नतादायक एवं आकर्षित व्यक्तित्व रखता है।

14. अपने कार्य को सदैव आगे बढ़ाता रहता है।

15. परिणाम प्राप्त करने के लिये व्यक्तिगत जिम्मेवारी समझता है।

16. सत्यनिष्ठा में विश्वास रखता है।

17. समय को महत्त्व देता है।

18. सतत प्रयत्नशील रहता है।

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मैकलान के अनुसार-उद्यमी के गुणों को निम्न तीन प्रकार से बाँटा जा सकता है—

1 असाधारण उत्पादकता।

2. जोखिम उठाने की भरपूर शक्ति।

3. उद्देश्य प्राप्ति के लिये तीव्र इच्छा।

उसे यह प्रमाणित करना चाहिये कि उद्यमी के साथ ये क्षमताएँ सम्बन्धित हैं। इस प्रकार उद्यमी

1 व्यक्तिगत जिम्मेदारियाँ निभाना पसन्द करता है।

2. जोखिम उठाना पसन्द करता है।

3. अपने किये गये प्रयत्नों के परिणाम जानना चाहता है।

4.बुरे समय में धीरज रख पाता है।

5. नयी पद्धति के चलन में विश्वास रखता है।

6. भविष्य के बारे में आशावान होता है।

7. प्रयत्नशील होते हुये पूर्ण रूप से सन्तोषी नहीं होता। यद्यपि स्वयं बने उद्यमियों के कछ गणों को पहचान लिया गया है, परन्तु इसके लिये कोई मानक स्तर नहीं है।

1997 में होनोलुल (Honolulu) में ईस्ट वेस्ट सेन्टर (East West Centre) द्वारा उद्यमिता पर संचालित की गई। कार्यशाला (Workshop) में सफल उद्यमी के गुणों की निम्नलिखित सूची तैयार की गई थी

विशेषताएँ (Characteristics)

1. आत्मविश्वास (Self Confidence)

लक्षण (Traits)

विश्वास, स्वतन्त्रता, वैयक्तिकता, आशावादी।

 

2. कार्य परिणाम अभिमुखी

(Task-result Oriented)

उपलब्धि की इच्छा, लाभ-अभिमुखी, अध्यवसाय दृढ़ता, संकल्प,

परिश्रम, प्रेरणा, ऊर्जा, पहलपन।

3. जोखिम वहन (Risk bearing)

 

जोखिम वहन योग्यता व चुनौती की इच्छा।
4. नेतृत्व (Leadership) नेतृत्व व्यवहार, मानवीय व्यवहार, सुझावों व आलोचनाओं के प्रति अनुक्रियाशील।

5. मौलिकता (Originality)

 

नवप्रवर्तक,सृजनशील,लोचशील (विचार स्वतन्त्रता),साधन सम्पन्न। बहविज्ञ (Varsatile), सुविज्ञ,दूरदर्शी, अनुबोधक (Perceptive)।

 

6. भविष्य उन्मुख (Future Oriented)

 

 
 

 

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उपर्युक्त वर्णन के आधार पर अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से निष्कर्ष स्वरूप, एक सफल साहसी के अत्यन्त महत्वपूर्ण गुणों एवं पूर्वापेक्षाओं को निम्न प्रकार समझा जा सकता है

(1) निर्णयन क्षमता (Decision-making Ability)—उद्यमी किसी भी व्यावसायिक अवसर का पूरा लाभ तभी उठा सकता है, जबकि उसमें तत्काल निर्णयन की क्षमता हो। इमर्सन का कथन है कि “जो व्यक्ति निर्णय ले सकता है, उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।” उद्यमी के निर्णयों का संगठन के भविष्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है अत: निर्णय सृजनात्मक एवं लाभप्रद होने चाहिए। उद्यमी को वैज्ञानिक विधि के द्वारा ही किसी समस्या को हल करके निर्णय लेना चाहिए।

(2) उद्यमी योग्यता (Entrepreneurial Ability)—साहसिक योग्यता के लिए उद्यमी का दृष्टिकोण साहसिक एवं मनोवृत्ति सकारात्मक होनी चाहिए। वह एक ऊर्जस्वी व्यवहार वाला एवं सफलता की सम्भावना का बोध रखने वाला व्यक्ति होना चाहिए, उसमें संगठन कौशल एवं भविष्य अभिमुखता हो, इस प्रकार उत्तरदायित्व के प्रति इच्छा रखने वाला व्यक्ति साहसिक योग्यता रखता है।

(3) नेतृत्व क्षमता (Decision-making Ability)—उद्यमी में नेतृत्व क्षमता होने से कर्मचारियों को प्रेरणा एवं निर्देशन मिलता रहता है जिससे उनके आत्मबल में कमी नहीं आती है। अत: उद्यमी में नेतृत्व क्षमता अवश्य होनी चाहिए। मेरेडिथ एवं नेल्सन का कहना है कि “सफल उद्यमी सफल नेता होते हैं वे कुछ या कई सौ कर्मचारियों का नेतृत्व करें।” उनके अनुसार नेतृत्व क्षमता रखने वाले उद्यमियों में निम्न गुण पाए जाते हैं

(i) नये विचारों को विकसित एवं क्रियान्वित करना, (ii) सामुदायिक जीवन में सक्रिय भाग लेना, (iii) अपनी शक्तियों को बढ़ाने तथा दुर्बलताओं को दूर करने के लिए निरन्तर प्रयास करना, (iv) अपने कार्यों व समय की सही योजना बनाना, (v) अपने नेतृत्व योग्यताओं को विकसित करने के लिए विशेष प्रयास करना, (vi) अपनी त्रटियों से सीखना, (vii) अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पित होना, (viii) अपने कर्मचारियों को अधिकार एवं दायित्व सौंपना. (ix) अपनी क्षमताओं में विश्वास रखना, (x) व्यक्तियों के साथ पूर्ण सहयोग करना, एवं (xi) संगठन की सफलता में कर्मचारियों को सहभागी बनाना।

इस प्रकार उपर्युक्त लक्षण ही उद्यमी में नेतृत्व क्षमता का गुण होने का प्रतीक है जो कि संगठन को मजबूत करते है।।

(4) जोखिम वहन क्षमता (Risk Bearing Capacity) किसी भी उद्यम के अन्तर्गत साहसी को सम्भावित सफलता। व हानि को सन्तुलित करते हुए अनिश्चितता के वातावरण में निर्णय लेने होते हैं जिनके परिणाम अनिश्चित एवं अज्ञात होते हैं। उद्यमी सदैव स्थिति का पूर्ण मूल्यांकन करते हुए ही जोखिम उठाता है अर्थात् वह सदैव उन योजनाओं को ही हाथ में लेता है । जिन्हें पूरा किया जा सकता है। वास्तव में, सन्तुलित व व्यावहारिक जोखिमों को वहन करना ही उद्यमी होने का लक्षण है।

(5) व्यावसायिक वातावरण का ज्ञान (Knowledge of Business Environment) आज का व्यावसायिक वातावरण काफी विस्तृत होने की वजह से उद्यमी को संगठन संरचना एवं कार्य संचालन के साथ विभिन्न स्रोतों (व्यवसाय से | सम्बन्धित) की तकनीकियों का ज्ञान रखना आवश्यक है। बदलती हुई व्यावसायिक नीतियों के युग में उद्यमी को मौद्रिक नीति, आदि का ज्ञान होना आवश्यक है। इस प्रकार जिस बाजार में वह अपना व्यापार कर रहा है, उसको प्रभावित करने वाले घटकों; जैसे माँग, पूर्ति, कीमतों, प्रतिस्पर्धा, उपभोक्ता, आय व रुचि, वितरण आदि का भी ज्ञान रखना आवश्यक है तथा व्यवसाय हेतु नवीन तकनीकी परिवर्तन का भी ज्ञान रखना आवश्यक होता है।

(6) कुशल नियोजन की योग्यता (Ability of Better Planning) नियोजन के माध्यम से उद्यमी उपक्रम के भविष्य पर विचार करता है, वातावरण की प्रवृत्तियों का पूर्वानुमान करता है तथा इन्हीं के आधार पर कर्मचारियों की क्रियाओं एवं प्राप्त किए जाने वाले परिणामों का निश्चय करता है। अत: उद्यमी में नियोजन शक्ति का होना अति आवश्यक पूर्वपेक्षा है, इसी के द्वारा ही वह संगठन में एक उचित व्यवस्था का निर्माण कर सकता है।

(7) सामाजिक एवं नैतिक गुण (Social and Moral Qualities)-उद्यमी में कुछ सामाजिक एवं नैतिक गुणों का समावेश भी होना चाहिए। वह मिलनसार व विनम्र होना चाहिए उसका चरित्र सुदृढ़ व ईमानदार हो। वह सहयोग की भावना रखने वाला, आदरभावी व निष्ठावान व्यक्ति होना चाहिए तथा उसका स्वभाव अत्यन्त सुशील हो। ऐसा गुण रखने वाला उद्यमी व्यवसाय के विभिन्न वर्गों से सफलतापूर्वक व्यवहार कर सकता है एवं उपक्रम को सफलता दिला सकता है।

(8) संगठन कौशल (Organisation Skill) जे. बी. से ने लिखा है कि “उद्यमी को संगठन एवं पर्यवेक्षण की कला आनी चाहिए।” यद्यपि संगठन व प्रशासन सम्बन्धी अनेक कार्यों को अपने कर्मचारियों को सौंप देता है, किन्तु उपक्रम की मूल संगठन की योजना साहसी अपने ही निर्देशन में तैयार करता है। अत: उद्यमी में संगठन की योग्यता होना अत्यन्त महत्वपूर्ण गुण है।

(9) तकनीकी कौशल (Technical Skill) उद्यमी को अपने व्यवसाय विशेष के बारे में विशिष्ट तकनीकी ज्ञान का होना अति आवश्यक है, क्योंकि वर्तमान समय मशीनी युग है, अत: व्यवसाय में प्रयुक्त विभिन्न यन्त्रों व उत्पादन विधियों का तकनीकी ज्ञान आवश्यक होता है जो कि कर्मचारियों को उचित निर्देशन देने में भी सहायक होता है। यह ज्ञान उद्यमी को किसी तकनीकी संस्थान द्वारा मिल सकता है।

(10) अन्य गण (Other Qualities)-(i) उद्यमी को अनेक वर्गों के साथ व्यवहार करना होता है, अत: उद्यमी में व्यक्तियों के साथ कार्य करने तथा मानवीय व्यवहार करने के गुण होने चाहिए। वह कर्मचारियों का दिल जीतने में भी सक्षम होना चाहिए। (ii) उद्यमी प्रखर बुद्धि वाला व्यक्ति होना चाहिए। उसकी कल्पना शक्ति सृजनात्मक होनी चाहिए। यदि उसकी स्मरण शक्ति अच्छी होगी तो वह अनेक सन्दर्भो एवं भावी योजनाओं को मस्तिष्क में रख सकता है तथा उन्हें याद रखकर आसानी से कार्य निष्पादित कर सकता है। (iii) उद्यमी एक परिश्रमी व्यक्ति होना चाहिए, क्योंकि कार्य की सफलता एवं लक्ष्य की प्राप्ति हेत प्रतिभा से कहीं ज्यादा परिश्रम योगदान देता है। (iv) उद्यमी महत्वाकांक्षी व परिपक्व विचारों वाला व्यक्ति होना चाहिए। प्रगतिशील विचारों वाला साहसी आधुनिक प्रबन्ध पद्धति का प्रयोग करेगा, जबकि रूढ़िवादी दृष्टिकोण तथा परम्परागत विचारधारा उपक्रम की प्रगति में बाधक सिद्ध होती है। (v) उद्यमी को हमेशा आशावान होना चाहिए उसे असफलताओं से निराश नहीं होना चाहिए वरन् उसे असफलता को सफलता की ओर ले जाने वाली सीढ़ियाँ मानना चाहिए। अपनी दूरदर्शिता के गुण द्वारा भावी घटनाओं का पूर्व मूल्यांकन करना चाहिए। दूरदर्शिता के गुण सेवह सम्भावित परिणामों का विश्लेषण कर सकता है। (vi) उद्यमी में व्यावसायिक चुनौतियों का सामना करने तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अडिग बने रहने के लिए आत्मविश्वास की शक्ति होनी चाहिए

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क्या उद्यमी गुणों का भण्डार है ? (Is Entrepreneur a Package of Qualities)

उद्यमी के गुणों का अध्ययन करने के उपरान्त हम इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकते कि उद्यमी की विशेषतायें उसे एक खास तरह का व्यक्ति बना देती हैं, क्योंकि किसी व्यक्ति में ये समस्त गुण एक साथ विद्यमान हों यह जरूरी नहीं है। अत: इस तरह का कोई परिणाम नहीं निकाला जा सकता कि इनमें से कुछ गुणों की कमी ने उद्यमी को असफल कर दिया। ऐसा भी सम्भव है कि जिस उद्यमी में सजनात्मक योग्यता है वह इनमें से कई गणों के अभाव में भी सफल हो सकता है। प्रत्येक व्यक्ति टाटा या बिड़ला नहीं हो सकता। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस व्यक्ति में इनमें से जितने अधिक गुण होंगे वह व्यक्ति उतना ही अधिक सफल हो सकता है। यह भी सम्भव है कि उद्यमी उपयुक्त में से अधिक-से-अधिक गुणों का विकास अपने अन्दर करने का प्रयास करे। ऐसा करने से सफलता अवश्य ही उसके कदम चूमेगी।

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उद्यमिता औद्योगिक, आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति का आधारस्तम्भ है। उद्यमिता के सृजनशील विचार द्वारा ही राष्ट्र की निर्धनता (Poverty), बेरोज़गारी (Unemployment): निम्न उत्पादकता (Low Productivity) एवं आर्थिक असमानता (Economic inequality) आदि का निवारण सम्भव है। इस दृष्टि से उद्यमिता अग्रणी (Leading) भूमिका निभाती है। अल्फ्रड नार्थ व्हाइटहेड के अनुसार, “महान समाज वह समाज होता है जिसमें सम्बन्धित व्यक्ति उद्यामता । चिन्तन एवं व्यवहार करता है।”1 वास्तव में उद्यमिता आर्थिक प्रगति (Economic Progress) का अग्रदूत एवं कार्याविधि  एव भावना का समन्वय है। यह मात्र जीविकोपार्जन का साधन ही नहीं वरन् कौशल (Skill) एवं व्यक्तित्व का विकास (personality development) की प्रभावी तकनीक भी है। राष्ट्र का सामाजिक एवं आर्थिक विकास उद्यमिता काही परिणाम है

उद्यमिता का अर्थ एवं परिभाषायें

(Meaning and Definitions of Entrepreneurship)

उद्यमिता एक कौशल (Skill), दृष्टिकोण (Viewpoint), चिन्तन (Thinking), तकनीक (Technique) एवं कार्यपद्धति (Working procedure) है। आर्थिक क्षेत्र में परम्परागत रूप में उद्यमिता का अर्थ व्यवसाय एवं उद्योग में निहित विभिन्न अनिश्चितताओं एवं जोखिम उठाने की योग्यता एवं प्रवृत्ति से होता है। जो व्यक्ति जोखिम सहन करते हैं उनको साहसी अथवा उद्यमी कहते हैं।

सामाजिक मनोविज्ञान एवं सैन्य अभियान्त्रिकी के क्षेत्र में उद्यमिता का प्रयोग प्राचीनकाल से होता आ रहा है। जबकि आर्थिक क्षेत्र में इसका विचार 18वीं शताब्दी के प्रारम्भ से माना जाता है। क्योंकि विभिन्न क्षेत्रों में उद्यमिता के विचार का प्रयोग होता है अत: इसके अर्थ के बारे में विचारक एक मत नहीं हैं। इसी कारण से विलियम बोमॉल ने कहा है कि “उद्यमिता का अर्थ सैद्धान्तिक रूप में भ्रम उत्पन्न करने वाला रहा है।” ।

आधुनिक अर्थ में उद्यमिता का अर्थ गतिशील आर्थिक वातावरण में सृजनात्मक एवं नवप्रवर्तनकारी (Innovative) योजनाओं एवं विचारों को क्रियान्वित करने की योग्यता है। उद्यमिता एक विज्ञान, व्यवहार, अवसर के साथ-साथ कर्म-दृष्टि (Work in sight) एवं दृष्टिकोण (Attitude) भी है। उद्यमी नवीन उपक्रम की स्थापना, नियन्त्रण एवं निर्देशन करने के साथ-साथ परिवर्तन एवं नवप्रवर्तन (Innovation) भी करता है। उद्यमीयता, उद्यमशीलता, उद्यम, साहसिकता आदि शब्दों का प्रयोग उद्यमिता के पर्यायवाची के रूप में होता है। उद्यमिता की विभिन्न विचारधाराओं के अनुसार इसकी परिभाषा को निम्न तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है

  • प्राचीन मत की परिभाषा (Classical View)
  • नव-प्राचीन मत की परिभाषा (Neo-classical View)
  • आधुनिक मत की परिभाषा (Modern View)
  • Entrepreneurship Importance Meaning Study

प्राचीन मत की प्ररिभाषा (Definition of Classical View)

इस श्रेणी की परिभाषा के विचारकों के अनुसार उद्यमिता व्यवसाय एवं उद्योग के प्रवर्तन (Promotion), संगठन (Organisation) तथा जोखिम वहन करने की क्षमता से सम्बन्धित है—

(1) हिगिन्स के अनुसार, “उद्यमिता विनियोग एवं उत्पादन के अवसरों को देखने, नई उत्पादन प्रक्रिया को प्रारम्भ करने हेतु साधनों को संगठित करने, पूँजी लाभ, श्रम को नियुक्त करने, कच्चे माल की व्यवस्था करने, संयन्त्र का स्थान दंढने, नई वस्तुओं व तकनीक को अपनाने, कच्ची सामग्री के नए स्रोतों का पता लगाने तथा उपक्रम के दैनिक संचालन हेतु उच्च प्रबन्धकों को चयन करने का कार्य है।”

(2) ए. एच. कोल के अनुसार, “उद्यमिता एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह की एक उद्देश्यपूर्ण क्रिया है, जिसमें निर्णयों की एक एकीकृत श्रृंखला सम्मिलित होती है। यह आर्थिक वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन अथवा वितरण के लिये एक लाभप्रद व्यावसायिक इकाई का निर्माण, संचालन एवं विकास करता है।”

(3) पीटर किलबाई के अनुसार, “उद्यमी व्यापक क्रियाओं का सम्मिश्रण है। इसमें विभिन्न क्रियाओं के साथ-साथ बाज़ार अवसरों का ज्ञान प्राप्त करना, उत्पादन के साधनों का संयोजन एवं प्रबन्ध करना तथा उत्पादन तकनीक एवं वस्तुओं को अपनाना। सम्मिलित है।” 8

(II) नव-प्राचीन मत की परिभाषा (Definition of Neo-Classical View)

इस वर्ग के विचारकों ने उद्यमिता को प्रबन्धकीय कौशल (Managerial skill) एवं नवप्रवर्तन (Innovations) के सन्दर्भ में परिभाषित किया है

(1) पीटर एफ. ड्रकर के अनुसार, “व्यवसाय में अवसरों को अधिकाधिक करना अर्थपूर्ण है, वास्तव में उद्यमिता की यही सहीं परिभाषा है।

(2) एच. डब्ल्यू. जाँनसन के अनुसार, “उद्यमिता तीन आधारभूत तत्वों का जोड़ है—अन्वेषण, नवप्रवर्तन एवं अनुकूलन।”

(3) जोसेफ शुम्पीटर के अनुसार, “उद्यमिता एक नवप्रवर्तनकारी कार्य है। यह स्वामित्व की अपेक्षा एक नेतृत्व का कार्य है।”

(4) फ्रेंकलिन लिंडले के अनुसार, “उद्यमिता समाज की भावी आवश्यकताओं का पूर्वानुमान करने तथा संसाधनों के । नवीन सृजनात्मक एवं कल्पनाशील संयोजनों के द्वारा इन आवश्यकताओं को सफलतापूर्वक पूरा करने का कार्य है।”

Entrepreneurship Importance Meaning Study

(III) आधुनिक मत की परिभाषा (Definition of Modern View)

आधुनिक मत के विचारकों ने उद्यमिता को सामाजिक नवप्रवर्तन एवं गतिशील नेतृत्व से सम्बन्धित किया है। उनके अनुसार उद्यमिता व्यवसाय, समाज तथा वातावरण को जोड़ने का कार्य करती है। वस्तुतः इस वर्ग में उद्यमिता का व्यावहारिक दृष्टिकोण परिभाषित किया गया है।

(1) लाक्स के अनुसार, “उद्यमिता जोखिम उठाने की इच्छा, आय एवं प्रतिष्ठा की चाह तथा स्वअभिव्यक्ति, सृजनात्मक एवं स्वतन्त्रता की अभिलाषा का मिश्रण है। यह दांव लगाने की भावना का उत्साह तथा सम्भवतः सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक तत्व

(2) रॉबर्ट लैम्ब के अनुसार, “उद्यमिता सामाजिक निर्णयन का वह स्वरूप है जो आर्थिक नवप्रवर्तकों द्वारा सम्पादित किया जाता है।” (3) रिचमेन तथा कोपेन के अनुसार, “उद्यमिता किसी सृजनात्मक बाह्य अथवा खुली प्रणाली की ओर संकेत करती है। यह नवप्रवर्तन, जोखिम वहन तथा गतिशील नेतृत्व का कार्य है।”

 

उद्यमिता की विशेषतायें/लक्षण अथवा प्रकृति

(Characteristics/Features or Nature of Entrepreneurship)

पीटर एफ. ड्रकर (Peter F.Drucker), जोसेफ शुम्पीटर (Joseph Schumpeter), रिचार्ड केन्टीलान (Richard Cantillion) उदय पारीक तथा मनोहर नाडकर्णी (Udai Pareek and Manohar Nadkarni), रॉबर्ट लैम्ब (Robert Lamb) आदि ने उद्यमिता की निम्नलिखित प्रकृति एवं विशेषताएँ बताई हैं

(1) नवप्रवर्तन (Innovation) नवप्रवर्तनकारी कार्य उद्यमिता है। नवीन संसाधनों, नवीन उत्पादन, नवीन तकनीक. नवीन उपयोगिताओं का सृजन, नवीन प्रबन्धकीय कौशल आदि नवप्रवर्तन के अन्तर्गत आते हैं। उद्यमिता की मूल प्रकृति नवप्रवर्तन है। पीटर एफ. ड्रकर (Peter F. Drucker) के अनुसार, “नवप्रवर्तन उद्यमिता का विशेष उपकरण है।” नवप्रवर्तन अथवा नवकरण सुनियोजित, सुव्यवस्थित एवं सकारात्मक ढंग से किया जाता है इसलिए जोसेफ शम्पीटर ने कहा है “उद्यमिता उद्देश्यपर्ण एवं व्यवस्थित नवप्रवर्तन है।” .

(2) जोखिम वहन करना (Risk Bearing)-उद्यमिता का मूल तत्व अनिश्चितताओं एवं जोखिमों को वहन करने की भावना एवं क्षमता है। उद्यमी जोखिम उठाने वाला होता है न कि जोखिम से बचाने वाला आर्थिक एवं व्यावसायिक क्रियाओं की जोखिम एवं सफलता के सन्दर्भ में जापानी मुहावरा, “सात बार गिरे, आठ बार उठे” ही उद्यमिता की जोखिम वहन विशेषता को दर्शाता है। ड्रकर का मत है कि “उद्यमिता को अत्यन्त जोखिमपूर्ण मानना केवल एक भ्रम है। उद्यमिता जुआ नहीं है।” उचित ढंग से प्रबन्धित एवं व्यवस्थित होने, उपयुक्त अनुसन्धान विधि एवं सिद्धान्तों का। पालन करने पर उद्यमिता जोखिमपूर्ण नहीं रह जाती है।

(3) ज्ञान आधारित व्यवहार (Knowledge Based Practice) उद्यमिता ज्ञान पर आधारित क्रिया है। ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर व्यक्ति में उद्यमिता का गुण जन्म लेता है। उद्यमिता बिना ज्ञान के अर्जित नहीं होती एवं बिना अनुभव के उद्यमिता का कोई व्यवहार नहीं होता। पीटर एफ. इकर के शब्दों में, “उद्यमिता न एक विज्ञान है न एक कला है यह एक व्यवहार है ज्ञान इसका आधार है।” उद्यमिता व्यक्ति के अन्तर्ज्ञान या उसकी अन्त:प्रेरणा के कारण उत्पन्न होने वाली भावना मात्र नहीं है। यह सिद्धान्तों, विचारधारा एवं आचरण पर आधारित होती है। अर्थशास्त्र, प्रबन्धशास्त्र, तकनीकी, सांख्यिकी, कानन. समाजशास्त्र, मनोवैज्ञानिक एवं व्यवहार विज्ञान का ज्ञान उद्यमिता को विकसित करने के लिए आवश्यक है।

(4) भूमिका रूपान्तरण प्रक्रिया (Process of Role Transformation)-उद्यमिता केवल व्यवसाय या उद्योग के प्रवर्तन अथवा नवप्रवर्तन की क्रिया मात्र न होकर व्यक्तित्व निर्माण (Identity Formation) की प्रक्रिया भी है। कोई भी व्यक्ति किसी नवप्रवर्तन को अपनाने मात्र से ही उद्यमी नहीं बन जाता है, बल्कि उसमें निरन्तर संलग्न रहकर अपनी पहचान (Identity) स्थापित करता है। पारीक एवं नाडकर्णी (Pareek and Nadkarni) के अनुसार, “उद्यमिता केवल किसी नए कार्य अथवा व्यवहार को अपनाना ही नहीं, बल्कि वह व्यक्ति के व्यक्तित्व का रूपान्तरण है इसके द्वारा व्यक्ति एक नई पहचान स्थापित करता है।”

(5) सजनात्मक क्रिया (Creative Activity) उद्यमिता की प्रकृति रचनात्मक होती है। व्यवसाय प्रवर्तन संगठन एवं प्रबन्ध में सदैव रचनात्मक चिन्तन द्वारा कार्य संस्कृति एवं गुणवत्ता वृद्धि का सतत् सार्थक प्रयास किया जाता है। इसलिए शुम्पीटर ने कहा है, “उद्यमिता वस्तुतः एक सृजनात्मक क्रिया है।” (Basically entrepreneurship is a creative activity.) रचनात्मक चिन्तन सदैव सकारात्मक, मौलिक एवं व्यावहारिक विचारों को क्रियान्वयन करने की प्रेरणा प्रदान करता है।

(6) सभी कार्य एवं प्रत्येक अर्थव्यवस्था में आवश्यक (Essential inall Activity and Every Economy) मानव जीवन के प्रत्येक कर्म में उद्यम आवश्यक है। शिक्षा, अनुसन्धान, सामाजिक एवं राजनीति, खेलकूद आदि प्रत्येक क्रियाओं में नेतृत्व तथा उपलब्धि पाने के लिए उद्यमिता अपरिहार्य है। उद्यमिता किसी भी तरह से न केवल आर्थिक संस्थाओं तक सीमित नहीं है यह एक जीवन शैली है।

(7) परिणाम जनित अर्जित व्यवहार (Result Oriented Achieved Behaviour) उद्यमिता सदैव लक्ष्यों, उद्देश्यों एवं परिणामों को प्राथमिक मानती है, भाग्य को नहीं। मूलत: उद्यमिता एक अर्जित व्यवहार है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति एवं संगठन को उद्यमिता के लिए सजग रहकर सार्थक प्रयास करना होता है। उद्यमी को भावना उत्पन्न करनी होती है तथा व्यवहार में उद्यमी प्रवृत्ति लानी होती है। उद्यमी सार्थक प्रयासों, ठोस योजनाओं, कुशल नेतृत्व, उपयुक्त निर्णयों एवं परिणाम जनित अर्जित व्यवहार के द्वारा उपलब्धियाँ प्राप्त करने पर बल देता है। ड्रकर ने कहा है, “उद्यमी व्यवसाय एवं उद्यम को कर्त्तव्य मानते हैं। वे इसके प्रति अनुशासित होते हैं, प्रयास करते हैं तथा व्यवहार में लाते हैं।”

(8) उद्यमिता केवल व्यक्तिगत लक्षण नहीं बल्कि सामूहिक आचरण है (Entrepreneurship not only personal trait butagroup behaviour) उद्यमिता व्यक्तित्व का मात्र गुण नहीं वरन् एक सामूहिक आचरण है। उद्यमिता में नेतृत्व एक व्यक्ति से विशेषज्ञों के एक संगठित समूह में हस्तान्तरित हो जाता है। आधनिक युग में उद्यमी के साथ ही बहुउद्यमी (Multiple entrepreneur), संयुक्त उद्यमी अथवा समूह उद्यमी की धारणा ही अधिक व्यावहारिक है। इसलिए उद्यमिता को सामूहिक आचरण कहा जाता है। इसमें विनियोजक,प्रवर्तक,पूँजीपति, आविष्कारक,प्रबन्धक समूह में उद्यमी प्रवृत्तियों का आचरण। करते हैं।

(9) व्यवसाय अभिमुखी (Business Oriented) उद्यमिता व्यक्ति को व्यावसायिक कल्पना एवं व्यवसाय प्रवर्तन की प्रेरणा देती है। उद्यमिता सामग्री, श्रम को संसाधनों में रूपान्तरित करने एवं उनके आर्थिक मूल्य (Economic Value) को विकसित करने की प्रक्रिया है। इकर ने कहा है, “उद्यमिता के पर्व प्रत्येक संयन्त्र एक कचरा तथा प्रत्येक खनिज मात्र एक चट्टान के रूप में है।” उद्यमिता के द्वारा समाज एवं देश में नए-नए उद्यमी एवं व्यावसायिक क्रियाओं की स्थापना। होती है।

(10) प्रबन्ध उद्यमिता का वाहन है (Managementis the Vehicleof Entrepreneurship) उद्यमा प्रवृत्तिया के क्रियान्वयन का आधार प्रबन्ध है। जोखिम वहन, प्रवर्तन, नवप्रवर्तन एवं उद्यमी निर्णयों व योजनाओं के क्रियान्वयन का माध्यम पबन्ध है। प्रबन्ध के द्वारा ही उद्यमी आर्थिक नेतृत्व (Economic Leader) का कार्य करता है एवं प्रबन्धक उद्यमी (Manager Entrepreneur) के रूप में अपना दायित्व निर्वाह करता है। इसलिए होसलिज (Hoselitz) ने कहा है, “प्रबन्धकीय कौशल एवं नेतृत्व उद्यमिता के सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू हैं।”प्रबन्धकीय योग्यताओं के साथ-साथ उद्यमी योग्यताओं को भी शिक्षण प्रशिक्षण के द्वारा विकसित किया जाने लगा है।

(11) वातावरण प्रेरित क्रिया (Environment Oriented Activity)-उद्यमिता केवल आर्थिक घटना या क्रिया नहीं बल्कि वातावरण से सम्बन्धित एक खुली प्रणाली है। सामाजिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक, तकनीकी, आर्थिक एवं भौतिक वातावरण के घटकों एवं उनके परिवर्तनों को ध्यान में रखने से उद्यमी प्रवृत्तियों का विकास होता है। शुम्पीटर का कथन है, “उद्यमिता प्रत्येक बाह्य स्थिति का रचनात्मक उत्तर है।”सामाजिक मान्यताओं व मूल्यों, शिक्षा, विज्ञान, जनसंख्या, शासकीय एवं प्रशासकीय नीतियों आदि के कारण व्यक्तियों के दृष्टिकोण एवं विचारों में सतत परिवर्तन का प्रभाव उद्यमिता प्रवृत्तियों के विकास को उत्प्रेरित करता है।

वृहत्, मध्यम व छोटे सभी प्रकार के उद्यम एवं व्यवसाय, प्रत्येक समाज एवं अर्थव्यवस्था में उद्यमिता विद्यमान होती हैं इसलिए लैम्ब (Lamb) ने कहा है, “सभी समाज अपने ढंग से उद्यमी होते हैं। इसलिए कहा जाता है कि उद्यमिता जीवन के प्रत्येक पग पर आवश्यक है।”

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उद्यमिता की अवधारणा

(Concept of Entrepreneurship)

ग्रामीण इलाकों, पिछड़े तथा अविकसित क्षेत्रों में जहाँ अनुकूल औद्योगिक वातावरण न हो, ऐसे स्थानों पर किसी नये एवं अनुभवहीन व्यक्ति द्वारा उद्योग-धन्धे स्थापित करने या किसी अन्य नवीन उद्योग व्यवसाय को प्रारम्भ करने का साहस व उपक्रम करने को उद्यमीयता अथवा उद्यमशीलता कहते हैं। इस कार्य में स्वतः प्रेरणा (Initiative), नेतृत्व या अग्रणीत्व (Leadership), अदम्य साहस, धैर्य एवं जोखिम उठाने (Risk taking) की क्षमता की आवश्यकता होती है। यह वास्तव में किसी भी औद्योगिक क्षेत्र अथवा उद्योगशाला के लिये एक अति आवश्यक क्रिया-कलाप है। उद्यमशीलता केवल वस्तु का उत्पादन करने या उत्पाद तैयार करने तक ही सीमित नहीं होती वरन् इसके अन्तर्गत वस्तु का विक्रय व्यापार एवं बाजार का रुख और सेवा (Service) इत्यादि भी शामिल होती है।

उद्यमिता के विस्तार की आवश्यकता तथा अवसर

(Opportunity and Necessity of Extension of Entrepreneurship)

किसी भी प्रगतिशील देश की आर्थिक उन्नति के लिए जो भी रणनीति अपनाई गयी हो, उसमें औद्योगिक प्रगति का होना अनिवार्य है। औद्योगिक प्रगति स्वयं अपने आप नहीं हो सकती और परिणामतः मानव संसाधनों द्वारा सतत प्रयत्नों के द्वारा ही ऐसा हो सकेगा। औद्योगिक प्रगति में ऐसे मानव संसाधनों को ही उद्यमी का नाम दिया गया। इस प्रकार उद्यमिता का हमारे जैसे प्रगतिशील देश में एक महत्त्वपूर्ण योगदान है। वास्तव में उद्यमी आवश्यक नहीं कि पैदायशी ही हों अपितु उन्हें विकसित भी किया जा सकता है। यद्यपि अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों तथा मनोवैज्ञानिकों का उद्यमी की प्रगति के बारे में भिन्न-भिन्न मत हैं तो भी एक बात पर सभी का एक मत है कि प्रयत्नों के द्वारा ही प्रगति की जा सकती है। ऐसे परिणामों द्वारा न केवल भारत अपितु दूसरे देशों ने भी प्रयत्न किए हैं।

उद्यमिता की महत्ता

(Importance of Entrepreneurship)

किसी भी राष्ट्र के विकास में उद्यम की बहुत महत्ता है, खासकर भारत जैसे विकासशील देश में, जहाँ आर्थिक तथा सामाजिक समस्याएँ हैं। उद्यम न केवल औद्योगिक क्षेत्र में बल्कि देश के कृषि एवं सेवा क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

बढ़ती जनसंख्या, बेरोजगारी, गरीबी आदि समस्याओं से निपटने के लिये, उद्यम लगातार लघु उद्योगों व व्यापारों को स्थापित करता आया है। आर्थिक शक्ति बढ़ाने, क्षेत्रीय असमानताएँ एकाधिकारियों द्वारा शोषण इत्यादि कई समस्याओं का समाधान उद्योगा। को विकसित करके हो सकता है जोकि एक सफल उद्यम ही दे सकता है। हालाँकि भारत में उद्यम का पूरी तरह विकास नहीं हुआ है, परन्तु यह तेजी से महत्त्व पा रहा है। लगातार बदलाव तथा नवीकरण उद्यम की एक जरूरत है तथा संसार की अर्थव्यवस्था। में बने रहने के लिए जरूरी है। उद्यम की योग्यता के बल पर ही साधारण मेलजोल से रोजना के प्रबन्धकीय कार्यों को उद्यम के संगठन में बदला जा सकता है।

अत: यह कहा जा सकता है कि उद्यम अर्थव्यवस्था के विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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उद्यमीयता वर्ग का उद्भव

(Emergence of Entrepreneurial Class)

उद्यमी वर्ग के उदभव को अनेक घटकों, जैसे पारिवारिक.सामाजिक, आर्थिक.मनोवैज्ञानिक,रीति-रिवाज, वंश-परम्पराएँ, पयावरण, धर्म, जाति, शिक्षा, तकनीकी ज्ञान, पेशेवर पृष्ठभूमि, स्थानान्तरण, चरित्र, विचार, पद्धतियाँ, आदर्श स्वामित्व का प्रारूप आदि ने प्रभावित किया है। श्री आर. ए. शर्मा द्वारा उद्यमी वर्ग के उद्भव के सम्बन्ध में निजी, सार्वजनिक तथा सरकारी कम्पनी का सन् 1961 से 1963 के मध्य किये गये सर्वेक्षण में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आये। इसी प्रकार श्री एन. गंगाधर राव ने आन्ध्र प्रदेश की 13 औद्योगिक बस्तियों में स्थित 87 उद्यमियों का सर्वेक्षण किया। उनमें भी उद्यमी वर्ग के उद्भव के सम्बन्ध में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आये। इन सभी का अध्ययन करने के पश्चात् निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि उद्यमी वर्ग के उद्भव को प्रभावित करने वाले प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं

(1) पारिवारिक पृष्ठभूमि (Family Background)-उद्यमी वर्ग के उद्भव में पारिवारिक पृष्ठभमि की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। अपने परिवार को ऊँचा उठाने, स्वतन्त्र कार्य करने, अत्यधिक धन कमाने, परिवार के सदस्यों को कार्य पर लगाने, पहलपन, दूरदृष्टि, प्रतिष्ठा अर्जित करने आदि जैसी प्रवृत्तियों ने उद्यमी वर्ग के उद्भव को अनेक प्रकार से प्रोत्साहित किया है। इन्होंने समूह का रूप धारण कर लिया है, जैसे—बिड़ला ग्रुप, टाटा ग्रुप, मोदी ग्रुप, सिंघानिया ग्रुप, बजाज ग्रुप आदि।

(2) जाति उद्भव (Caste Emergence) इतिहास इस बात का साक्षी है कि भारत में अधिकांश उद्यमी वर्ग का उद्भव जाति के आधार पर ही हुआ है। कुछ धर्म व जातियाँ उद्यमी निपुणता को प्रोत्साहित करते हैं, जैसे—पारसी, पंजाबी, मारवाड़ी, महेश्वरी, जैन, गुजराती, सिन्धी, वैश्य आदि। इनका भारत के अधिकांश उद्योगों पर आज भी एकाधिकार है। एन. गंगाधर राव द्वारा 87 उपक्रमों के लिये किये गये सर्वेक्षण में यह निष्कर्ष निकला कि अधिकांश उपक्रमों में वैश्यों का अधिकार है।

(3) धार्मिक पृष्ठभूमि (Religious Background) धार्मिक पृष्ठभूमि ने भी उद्यमी वर्ग के उद्भव को प्रोत्साहित किया है। मैक्स वेबर (Max Weber) के अनुसार प्रोटेस्टैण्ट नीतिशास्त्र ने ईसाइयों में उद्यमी भावना के विकास को प्रोत्साहित किया है।

(4) प्रारम्भ किये गये उद्योग के प्रकार (Types of Industry Started) उद्यमी वर्ग के उद्भव में उद्योग के प्रकार की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। वर्तमान में किये गये सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 2/3 उद्यमियों ने इन्जीनियरिंग के क्षेत्र में उद्योगों की स्थापना की है। 1/10 से अधिक उद्यमियों ने गैर-धातुकृत उत्पादों की इकाइयाँ स्थापित की हैं तथा 7.5% उद्यमियों ने प्लास्टिक इकाइयों की स्थापना की है। शेष उद्यमियों ने खाद्य उत्पादों एवं अन्य विभिन्न उत्पादों से सम्बन्धित औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की है।

(5) शिक्षा एवं तकनीकी ज्ञान (Education and Technical Knowledge)-उद्यमी वर्ग के उद्भव में शिक्षा एवं तकनीकी ज्ञान की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। वे दिन लद गये जब अनपढ़ लोग बड़े-बड़े औद्योगिक साम्राज्य स्थापित कर लिया करते थे। वर्तमान में व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्र दिनों-दिन जटिल होता जा रहा है। इसका प्रमुख कारण है आपसी गलाकाट प्रतियोगिता, जटिल सरकारी नियमन एवं कानून, सरकारी नीतियाँ एवं प्रेरणाएँ, बदला हुआ आर्थिक एवं व्यावसायिक पर्यावरण, बैंकों एवं वित्तीय संस्थाओं की बढ़ती हुई भूमिका, अनुसन्धानों पर बल, तकनीकी संस्थानों की स्थापना, शिक्षण एवं प्रशिक्षण की सुविधाएँ आदि घटकों ने उद्यमी वर्ग के उद्भव में शिक्षा एवं तकनीकी ज्ञान को प्रोत्साहित किया है। आजकल स्कूलों, कॉलेजों, तकनीकी संस्थानों, प्रबन्ध विज्ञान संस्थानों, प्रशिक्षण संस्थाओं आदि से निकलकर बड़ी संख्या में नवयुवक व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं।

(6) पेशेवर पृष्ठभूमि (Occupational Background)-उद्यमी वर्ग के उद्भव से पेशेवर पृष्ठभूमि की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। उदाहरण के लिए, कृषि व्यवसाय में संलग्न व्यक्तियों की तुलना में पेशेवर व्यक्ति उद्यमिता की ओर अधिक आकर्षित हुए हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार, काफी संख्या में उद्योग स्थापित करने वाले साहसी ऐसे लोग थे जो । कि शरू में बेरोजगार थे। इस प्रकार उद्यमिता किसी विशेष पेशे तक सीमित नहीं है, अपित इसके लिए प्रवत्ति, जोश, साहस, कौशल प्रौद्योगिकी, दरदृष्टि आदि गुणों की आवश्यकता होती है। वर्तमान में तकनीकी ज्ञान से ओत-प्रोत व्यक्ति उद्यमिता में तेजी से प्रवेश कर रहे हैं। आर. ए. शर्मा द्वारा किये गये सर्वेक्षण के अनुसार 198 में से 134 उद्यमी व्यापारिक समदाय से। आये थे।

(7) व्यक्तिगत घटक (Individual Factors) उद्यमी वर्ग के उद्भव में व्यक्तिगत घटक भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। व्यक्ति विशेष नवीन उपक्रम स्थापित करने का साहस करता है, उसके लिए आवश्यक संसाधन जुटाता है, प्रबन्ध करता है, विकास की योजना बनता है, उन्हें यथा-समय क्रियान्वित करता है, उत्पन्न चुनौतियों का सामना करता है, अपने कौशल का प्रयोग करता है, जोखिम उठाता है तथा अन्ततः उसे एक लाभकारी उपक्रम में परिणित करता है।

(8) स्थानान्तरण चरित्र (Migratory Character) उद्यमी के उद्भव के स्थानान्तरण चरित्र की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में पाँच में से चार उद्यमी स्थानीय न-होकर अन्य राज्यों में से अथवा राज्य के अन्दर के विभिन्न स्थानों से आये हैं। यदि आप भारत के बड़े-बड़े नगरों, जैसे—दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलुरु आदि नगरों में स्थित प्रमुख उद्योगों का सर्वेक्षण करें तो आपको ज्ञात होगा कि 75% से भी अधिक उद्यमी वे हैं, जो स्थानीय न होकर अन्य स्थानों से आये हैं। राजस्थान के मारवाड़ी उद्यमी इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं।

(9) स्वामित्व का प्रारूप (Form of Ownership)—एक सर्वेक्षण के अनुसार, आधी से अधिक इकाइयाँ, साझेदारी इकाइयाँ, 1/3 इकाइयाँ एकाकी स्वामित्व तथा लगभग 1/10 इकाइयाँ निजी कम्पनियों के प्रारूपों में स्थापित की गयी हैं। साझेदारी इकाइयों की अधिक संख्या में स्थापना होने का प्रमुख कारण उद्यमियों का कम्पनी की स्थापना में उत्पन्न होने वाली वैधानिक औपचारिकताओं की पूर्ति के बन्धन से बचना है।

(10) विविध (Miscellaneous) उपर्युक्त के अतिरिक्त अन्य ऐसे घटक हैं जो उद्यमी वर्ग के उद्भव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं वे निम्न हैं, जैसे मनोवैज्ञानिक घटक, आदर्श, पर्यावरणीय घटक, जाति, पद्धतियाँ, अभिप्रेरण, आत्म-निर्भरता, कार्य, संस्कृति आदि।

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उद्यमीयता उत्प्ररेणा

(Entrepreneurial Motivation)

लम्बी अवधि से यह धारणा बनी हुई है कि लोगों की गरीबी का कारण अज्ञानता है। ऐसा विश्वास किया जाता था कि मनुष्य मूलत: उग्र है और इसलिए वह स्वार्थ प्रिय काम करता है, जब भी उसे अपनी गरीबी दूर करने का अवसर दिया गया। परन्तु मानव कभी-कभी बाहरी रूप से विवेकरहित होता है। संसार के विभिन्न भागों की आर्थिक प्रगति को देखा जाये जो सभी लोग प्रगति के अवसरों की तरफ उन्मुख नहीं होते। उनमें से कुछ ही इस ओर अग्रसर होते हैं बाकी इस ओर उदासीन होते हैं, जो ये प्रदर्शित करते हैं कि गरीबी दूर करने की बजाए या धन लाभ की बजाय कोई चीज ऐसी है जो उन्हें प्रगति के रास्ते की ओर प्रेरित करती है।

आइये देखें कि वातावरण में ऐसा क्या है जो लोगों को उन अवसरों की ओर उन्मुख बनाये, वो किस प्रकार स्वयं उद्यम स्थापित करें, इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए स्वयं उद्यमी-प्रेरणा की परीक्षा से पता चलता है कि किस विषय के ज्ञान द्वारा स्वयं उद्यम की स्थापना को वृद्धि में नये रास्ते प्राप्त होते हैं।

प्रेरणा एक प्रगतिशील प्रक्रिया है तथा इसका अपना एक गति-शास्त्र है।

मानव उत्प्रेरणा का गति-शास्त्र (Dynamics of Human Motivation)

प्रेरणादायक सिद्धान्तों की प्रस्तावना के आधार पर यह विचार किया जाता है कि व्यवहार का उद्देश्य पूर्ण होना आवश्यक है तथा यह व्यवहार किस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये किया जाता है। अत: प्रेरणा से तात्पर्य है कि ऐसे सभी कार्य जो उद्देश्य प्राप्ति के लिये प्रेरित करते रहे। प्रेरणा शब्द 20वीं शताब्दी के आरम्भिक काल से प्रारम्भ हुआ, जब मानव के विवेकशील व्यवहार ने बहुत से ऐसे प्रश्न मानव के कार्य कलापों के बारे मे पैदा कर दिये। विवेकशील व्यक्तियों की राय के अनुसार मानव एक स्वछन्द चरित्र है जोकि कोई भी काम करते समय अच्छा व बुरा रास्ता अपनाता है ये सभी उस व्यक्ति विशेष की बुद्धि तथा शिक्षा पर निर्भर करता है। यदि उसमें अच्छाई का ज्ञान हो जाये और यह चुनाव कर ले तो अपने आप वो उस रास्ते की तरफ काम करना शुरू कर देता है।

विभिन्न मानवीय उद्देश्य, अर्थात् वह उद्देश्य जो मानव को पशु से भिन्नता दर्शाते हैं, जिन पर आमतौर पर मानव-व्यवहार। निर्भर करता है, वे मुख्य तौर पर जीव-सम्बन्धी या उत्तरजीवी उद्देश्यों से भिन्न हैं। हालांकि उनमें स्वयं भावना, कुशलता तथा सामाजिक स्वीकृति सम्बन्धित हों, ऐसे उद्देश्य अनुभव पर आधारित होते हैं, न कि पैतृक और ये व्यक्ति विशेष द्वारा उनके जीवन में दूसरे लोगों के साथ आपसी व्यवहार के परिणाम से उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार इन्हें सामाजिक अथवा मानसिक उद्देश्यों के तौर पर परिभाषित किया, जिससे वह जीव सम्बन्धी उद्देश्यों से भिन्न हैं।

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उद्यमी उत्प्रेरणा तथा उद्देश्य प्राप्ति की आवश्यकता  (Entrepreneur Motivation and Need of Achievements)

सामाजिक उद्देश्यों की प्रेरणा के दार्शनिकों ने मानव व्यवहार के लिये तीन श्रेणियों को इंगित किया है

1. उद्देश्यों की प्राप्ति।

2. शक्ति की आवश्यकता।

3. देखभाल की आवश्यकता।

ये तीनों कार्य एक-दसरे से भिन्न हैं तथा प्रत्येक व्यक्ति के विचारों और कार्य-कलापों में भी इनकी भिन्नता दिखाई। देती है।

1. उद्देश्यों की प्राप्ति की आवश्यकता वर्णन करता है कि, व्यक्ति अति उत्तम कार्य बिना किसी इनाम की च्छा या। सम्मान के लालच में करता है।

2. शक्ति की आवश्यकता वर्णन करता है कि व्यक्ति विशेष दूसरों को नियन्त्रित करने, प्रभावित करने की स्वाभाविक इच्छा शक्ति होती है।

3. देखभाल की आवश्यकता वर्णन करता है कि, व्यक्ति विशेष दूसरों से किस तरह सम्बन्ध बनाता है उन्हें जारी रखता है तथा दृढ़ करता है।

ऐसे सभी उद्देश्य किसी एक ही व्यक्ति में विद्यमान हो सकते हैं, परन्तु किसी एक की उसमें अधिकता होती है। प्राय: उसके सभी कार्यों में, विशेषकर उसके भविष्य के चुनाव के सम्बन्ध में, जहाँ पर वह परिपूर्णता प्राप्त करता है। यह पाया गया है कि प्राय: जिसमें मानव शक्ति होगी वह नेतृत्व की स्थिति/पद खोजता है। ऐसे आदमी अच्छे मैनेजर, अधिकारी, सर्वेक्षक हो सकते हैं न कि व्यापार के संस्थापक। इसके विपरीत जिनमें देख-भाल की आवश्यकता अधिक हो वे व्यक्ति जीवन में प्राय: त्याग करते हैं, और सफलता के लिये झगड़ों से दूर रहते हैं। उदाहरणतया सुखी वैवाहिक जीवन की स्त्रियाँ अथवा विवाह ऐच्छिक स्त्रियाँ तथा सामाजिक कार्यकर्ता।

स्वयं उद्यमी की सफलता के लिये उद्देश्यों की प्राप्ति को बारीकी से पहचाना गया है जिसे प्रगति के लिये “तीव्र इच्छुक” भी कह सकते हैं। स्वयं उद्यमी की आर्थिक प्रगति के उद्देश्य प्राप्ति के लिये, विभिन्न आदतें जिनमें विचार तथा कार्य उस उद्यम को बनाने के लिये आवश्यक है, परिणामस्वरूप इससे अधिक प्रगति होती है।

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उद्यमिता की विचारधाराएँ

(Theories of Entrepreneurship)

विभिन्न विद्वानों ने समय-समय पर उद्यमिता के विभिन्न सिद्धान्तों अथवा विचारधाराओं का प्रतिपादन किया है। उद्यमिता के प्रमुख सिद्धान्तों अथवा विचारधाराओं का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है

  • आर्थिक सिद्धान्त अथवा विचारधाराएँ (Economic Theories)
  • समाजशास्त्रीय सिद्धान्त अथवा विचारधाराएँ (Sociological Theories)
  • मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त अथवा विचारधाराएँ (Psychological Theories)
  • एकीकृत विचारधाराएँ (Integrated Theories)

( I ) आर्थिक सिद्दान्त अथवा विचारधाराएँ (Economic Theories)

अर्थशास्त्रियों के अनुसार उद्यमिता एवं आर्थिक विकास उन परिस्थितियों में होता है, जबकि विशिष्ट आर्थिक परिस्थितिया। अथवा अवसर उनके लिए सर्वाधिक अनुकूल हों। उद्यमिता के आर्थिक सिद्धान्त के अनुसार उद्यमी ऐसी अनकल आर्थिक परिस्थितिया। अथवा अवसरों का अधिकतम उपयोग करने के लिए ही व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्र में प्रवेश करता है। यह सर्वविदित है। कि किसी देश की व्यावसायिक एवं औद्योगिक परिस्थितियाँ सदैव समान नहीं रहती हैं अर्थात कभी मन्दी का समय होता है तो कभी तेजी का समय। मन्दी के समय मूल्य-स्तर में निरन्तर गिरावट आती है, जबकि तेजी के समय मूल्यों में निरन्तर वृद्धि होता, चली जाती है। इस सिद्धान्त अथवा विचारधारा के प्रतिपादक मुख्य रूप में जी. एफ. पेपनेक (G.F. Papanek) तथा ज. आर. हैरिस (J. R. Harris) हैं। उनके अनुसार आर्थिक प्रेरणाएं उद्यमिता क्रियाओं की मख्य चालक हैं। कुछ दशाओं से ऐसा दिखाई नहीं देता, किन्तु व्यक्ति का आन्तरिक चालक आर्थिक लाभ से सदैव सम्बन्धित रहता है। इस दृष्टि से ये आर्थिक प्रेरणाएं तथा लाभ ही औद्योगिक उद्यमिता के उद्गम की पर्याप्त शर्त है। जब कोई व्यक्ति यह अनभव करता है कि किसी उत्पादन अथवा सेवा का बाजार सन्तुलन से परे है तो वह वर्तमान मूल्यों पर उत्पाद का क्रय करके उसको उन व्यक्तियों को बेच देता है जोकि उसका अधिकतम मूल्य देने के लिए तत्पर होते हैं।

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(II) समाजशास्त्रीय सिद्धान्त अथवा विचारधाराएँ (Sociological Theories)

समाजशास्त्रियों के अनुसार उद्यमिता का उद्भव विशिष्ट सामाजिक संस्कृति में होता है। समाजशास्त्रीय विचारधारा के अनुसार सामाजिक अनुमोदन, सांस्कृतिक मूल्य, परम्पराएँ, समूह गत्यात्मकता, भूमिका की आकांक्षाएँ आदि घटक उद्यमिता के उद्भव के विकास के लिए उत्तरदायी हैं। समाजशास्त्रीय विचारधाराओं के प्रतिपादन में थॉमसकोक्रेन (Thomas Cochran), मैक्स वेबर पीटर (Max Weber Peter), बर्ट एफ. हासीजिल (Bert F. Hoselitz), फ्रैंक डब्ल्यू. यंग (Frank W.Young), एवरेट ई.हेगन (Everett E. Hagan), रेण्डाल जी. स्टोक्स (Randall G. Stokes) आदि ने महत्त्वूपर्ण योगदान दिया है। नीचे इन विद्वानों की विचारधाराओं क संक्षेप में विवरण दिया जा रहा है

(1) मैक्स वेबर पीटर की विचारधारा (Max Weber Peter’s Theroy)-मैक्स वेबर पीटर की विचारधारा के अनुसार, “धार्मिक विश्वास की उद्यमी के पेशे में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।” उन्होंने उद्यमिता के विकास को प्रोटेस्टैण्ट व अन्य कई धर्मों के साथ जोड़ा है। उनका मत है कि जिन धार्मिक समुदायों ने पूँजीवाद, भौतिकवाद और अर्थ विवेकशीलता पर बल दिया है, वे उद्यमियों, धन-सम्पदाओं, पूँजीवाद आदि को जन्म देते हैं। प्रोटेस्टैण्ट की विचारधारा ने इंग्लैण्ड, अमेरिका, टर्की आदि देशों में उद्यमिता के विकास में योगदान दिया है एवं विकसित करने में सफल रहे हैं।

(2) थॉमस कोक्रेन की विचारधारा (Thomas Cochran’s Theory) थॉमस कोक्रेन की विचारधारा के अनुसार, “उद्यमिता के विकास में सांस्कृतिक मूल्यों, भूमिका, आकांक्षाओं तथा सामाजिक अनुमोदन का महत्त्वपूर्ण स्थान है।” उद्यमी का निष्पादन अपने पेशे, भूमिका, आकांक्षाओं, अनुमोदन समूहों, कृत्य की पेशेवर आवश्यकताओं, सामाजिक मूल्यों आदि की ओर उसकी व्यक्तिगत प्रवृत्ति पर निर्भर करता है।

(3) रेण्डाल जी. स्टोक्स की विचारधारा (Randall G. Stoke’s Theroy) रेण्डाल जी. स्टोक्स की विचारधारा के अनुसार, “आर्थिक-सांस्कृतिक मूल्यों, पर आधारित आर्थिक क्रियाओं ने औद्योगिक उद्यमिता के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।” वे उद्यमिता के विकास में मनोवैज्ञानिक अभिरुचि की तुलना में सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों पर अधिक बल देते हैं।

(4) बर्ट एफ. हॉसीलिज (Bert F. Hoselitzis Theory) की विचारधारा-बर्ट एफ. हॉसीलिज की विचारधारा के अनुसार, “सांस्कृतिक दृष्टि से सीमान्त समूहों की भूमिका उद्यमिता तथा आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण रही है।” उसकी मान्यता है कि सीमान्त व्यक्ति परिवर्तन की स्थितियों में सृजनात्मक समायोजन करने के लिए अधिक योग्य होते हैं तथा इस समायोजन की प्रक्रिया के दौरान वे सामाजिक व्यवहार में वास्तविक नवाचार लाने का प्रयास करते हैं।

(5) एवरेट ई. हेगेन की विचारधारा (Everett E. Hangan’s Therory) कई देशों में उद्यमियों का उद्गम तथा पृष्ठभूमि के सम्बन्ध में किये गये अध्ययन के आधार पर हेगेन इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि उद्यमिता के विकास में समदायों तथा जातियों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।

(6) फ्रैंक डब्ल्यू. यंग की विचारधारा (Frank W. Young’s Theory) —फ्रैंकड की विचारधारा के अनुसार, “व्यक्तियों से नहीं अपितु साहसी समूहों से ही साहसी क्रियाओं का विस्तार सम्भव है।

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(III) मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त अथवा विचारधाराएँ (Psychological Theories)

इस विचारधारा के अनुसार, उद्यमिता के विकास के मूल प्रेरक मनोवैज्ञानिक घटक हैं। जब समाज में पर्याप्त मात्रा में मनोवैज्ञानिक लक्षणों से युक्त व्यक्तियों की पूर्ति होती है, तब उद्यमिता के विकसित होने के अधिक अवसर रहते हैं उद्यमिता के विकास पर व्यक्ति की आन्तरिक इच्छाओं, मनोवृत्तियों, आदतों, आकांक्षाओं, प्रेरणाओं, संवेगों व दष्टिकोण का अत्यन्त गहरा प्रभाव पड़ता है। मनोवैज्ञानिक विचारधाराओं के प्रेरकों में निम्नलिखित के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं

(1) एवरेट ई. हेगेन की विचारधारा (Everett E. Hegen’s Theory) हेगेन ने प्रतिष्ठा के प्रत्याहार की विचारधारा का विकास किया है उनके अनुसार, “किसी सामाजिक समूह की प्रतिष्ठा का प्रतिहार (Withdrawal of Status) ही उद्यमी के व्यक्तित्व के विकास का कारण है।” हेगेन ने निम्न चार प्रकार की घटनाओं का पता लगाया है जोकि प्रतिष्ठा का प्रतिहार। कर सकती हैं-(i) प्रतिष्ठा का शक्ति अथवा जबरदस्ती प्रतिहार करना; (ii) प्रतिष्ठा चिह्न से वंचित करना; HD आर्थिक सत्ता के वितरण में परिवर्तन हो जाने अर्थात् शक्ति कमजोर हो जाने से प्रतिष्ठा चिह्न में गिरावट आनाः तथा (iv) नये समाज में प्रवेश करने में आशातीत प्रतिष्ठा का प्राप्त न होना। पद व सम्मान घट जाने की दशा में वह व्यक्ति अथवा समूह उस प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने के लिए सृजनात्मक व्यवहार करेगा फलस्वरूप उद्यमिता का विकास सम्भव होगा अर्थात समाज म प्रतिष्ठा विसंगति’ (Status Dissonance) साहसियों को जन्म देती है।

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(2) डावडसा, मक्लालेण्ड की विचारधारा (David c. McClelland’s Theory) डेविड सा. मक्लालण्ड विचारधारा के अनुसार, “उपलब्धि पाने की तीव्र इच्छा व्यक्ति को उद्यमिता की क्रियाओं की ओर आकर्षित करती  है।” व्यवसाय अथवा उद्योग के क्षेत्र में उत्कृष्टता की ऊँचाइयों को छने एवं विशिष्ट उपलब्धियाँ प्राप्त करने की भावना से ही किसी व्यक्ति में उद्यमी होने की क्षमता विकसित होती है। उपलब्धि की लालसा ही बच्चों के श्रेष्ठ ढंग से पालन-पोषण करने, श्रेष्ठता क प्रमापो, आत्म-निर्भरता, स्वतन्त्रता, प्रशिक्षण पर निर्भरता, पिता के प्रभुत्व में शिथिलता आदि बातों पर बल देने के लिए आभप्रारत करती है। इस प्रकार उपलब्धि की प्रबल इच्छा को एक प्रमुख घटक मानते हुए मैक्लीलैण्ड ने उद्यमिता के विकास के लिए अभिप्रेरण प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजन पर बल दिया है।

(3) जोसेफ ए. शम्पीटर की विचारधारा (Joseph A. Schumpeter’s Theory) शुम्पीटर की उद्यमी मनोवैज्ञानिक विचारधारा के अनुसार, “साहसी मुख्य रूप में शक्ति पाने की इच्छा, निजी राज्य की स्थापना करने की इच्छा और किसी राज्य पर विजय करने की इच्छा से अभिप्रेरित होते हैं।” उनके अनुसार, उद्यमी के व्यवहार में निम्न बातें स्पष्ट होती हैं

(i) भावी घटनाओं को इस प्रकार देखने की अन्तःप्रेरणा जो बाद में सत्य सिद्ध होती हो;

(ii) स्थायी आदतों पर विजय पाने की शक्ति, इच्छा एवं संकल्प; तथा

(iii) सामाजिक प्रतिरोध का सामना करने की क्षमता।

शुम्पीटर के अनुसार, उद्यमी एक नवप्रवर्तक व्यक्ति है जो नवाचार के द्वारा लाभ अर्जित करने की इच्छा रखता है। इसमें मनोवैज्ञानिक शक्तियाँ निहित होती हैं और उन्हीं से वह अभिप्रेरित होता है।

(4) पीटर एफ. ड्रकर की विचारधारा (Peter F. Drucker’s Theory)-पीटर एफ. ड्रकर के अनुसार, “उद्यमिता न तो कला है और न ही विज्ञान, अपितु यह प्रक्रिया है।” यह एक व्यवहार है जिसका मूलाधार ज्ञान है। ज्ञान के माध्यम से ही लक्ष्यों की प्राप्ति होती है। व्यवहार से ज्ञान निर्मित होता है। ज्ञान एवं व्यवहार पर आधारित प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है जिसके द्वारा लक्ष्यों की प्राप्ति होती है।

(5) जॉन कुनकेल की विचारधारा (John Kunkel’s Theory)-जॉन कुनकेल ने साहस पूर्ति के सम्बन्ध में एक व्यवहारी विचारधारा प्रस्तुत की है। उनके अनुसार उद्यमिता का विकास किसी भी समाज के विगत एवं विद्यमान सामाजिक संरचना पर निर्भर करता है तथा यह विकास आर्थिक एवं सामाजिक प्रेरणाओं से प्रभावित होता है। उनके अनुसार उद्यमिता परिस्थितियों के विशेष संयोजन पर निर्भर करती है जिसका सृजन करना कठिन किन्तु विनाश करना सरल होता है। उद्यमिता मूल रूप में किसी देश की सामाजिक-आर्थिक संरचना का परिणाम है।

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(IV) एकीकृत विचारधाराएँ (Integrated Theories)

उद्यमिता के विकास की एकीकृत विचारधाराएँ कई प्रकार के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक,राजनीतिक तथा मनोवैज्ञानिक घटकों पर आधारित हैं। इनमें से कुछ प्रमुख विचारधाराएँ निम्नलिखित हैं

(1) टी. वी. राय की विचारधारा (T.V. Rao’s Theory) टी. वी. राय ने उद्यमिता के विकास में साहसिक मनोवत्ति (Entrepreneurial Disposition) को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना है। यदि देखा जाये तो उद्यमिता का मूलाधार ही साहसिक मनोवृत्ति का होना है। यदि उद्यमी में से साहसिक मनोवृत्ति को निकाल दिया जाये तो उसका समूचा अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। यह उद्यमी की साहसिक मनोवृत्ति ही है, जो उसे जोखिम उठाने, कदम आगे बढ़ाने तथा नये-नये उपक्रमों की स्थापना करने के लिए अभिप्रेरित करती है। श्री राव ने साहसिक मनोवृत्ति के अन्तर्गत निम्न घटकों को सम्मिलित किया है—(i) गतिशील प्रेरणा (Dynamic Incentive), (ii) दीर्घकालीन निष्ठा (Long-term Devotion), (iii) वैयक्तिक, सामाजिक एवं भौतिक संसाधन (Individual, Social and Physical Resources), एवं (iv) सामाजिक एवं राजनीतिक प्रणाली (Social and Political System)।

श्री टी. वी. राव का यह स्पष्ट मत है कि उद्यमी की साहसिक मनोवृत्ति के विकास पर इन सभी घटकों का सम्मिलित प्रभाव पड़ता है और वे प्रौद्योगिक क्रियाओं को प्रोत्साहित करते हैं।

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(2) बी. एस. वेंकट राव की विचारधारा (B.S. Venkata Rao’s Theory) श्री बी. एस. बैंकट राव ने उद्यमिता के विकास की अग्रलिखित पाँच अवस्थाओं का वर्णन किया है।

(i) उत्प्रेरण (Simulation) बी. एस. बैंकट राव के अनुसार उद्यमिता के विकास की सबसे पहली अवस्था उत्प्रेरण है। इस अवस्था में उद्यमियों के विकास के लिए विभिन्न प्रेरणायें प्रदान करके उनके लिये एक उपयुक्त पर्यावरण उत्पन्न किया। जाता है। देश में औद्योगिक विकास कार्यक्रमों, नीतिगत घोषणाओं, औद्योगिक विकास की विशेष योजनाओं (जैसे—सस्ती बिजली, सस्ती भूमि, निःशुल्क तकनीकी प्रशिक्षण, पर्याप्त पानी, कच्चा माल, सरकार द्वारा उचित मूल्य पर निर्मित माल क्रय किया जाना, विपणि सुविधाएँ, कर सम्बन्धी रियायतें, परिवहन की सुविधाएँ, संचार संसाधनों की सुविधाएँ, विदेशों से कच्चा माल आयात करने की सुविधाएँ आदि)। सहायक संसाधनों की स्थापना तथा व्यापक प्रचार-प्रसार द्वारा उद्यमियों को उत्प्रेरित किया जाता है, ताकि वे उपक्रम स्थापित करने के लिए अभिप्रेरित हों।

(ii) विकास (Development)—इस अवस्था में उद्यमियों के विकास के लिये प्रबन्धकीय प्रशिक्षण, तकनीकी प्रशिक्षण एवं व्यावसायिक मार्गदर्शन के कार्यक्रम संचालित किये जा सकते हैं। विभिन्न नीतियों एवं कार्यक्रमों के द्वारा साहसिक क्रियाओं का विस्तार किया जाना सम्भव है।

(iii) अनुवर्तन (Follow-up)—इस अवस्था में उद्यमिता के विकास हेतु बनाये गये सरकारी कार्यक्रमों एवं नीतियों की समीक्षा की जाती है तथा उद्यमिता के संवर्द्धन हेतु नये उपाय किये जाते हैं।

(iv) संवर्द्धन (Promotion) समाज में औद्योगिक क्रियाओं के विस्तार तथा साहस को प्रोत्साहित करने के लिये अनेक सहायता संगठनों का निर्माण किया जाता है। ये साहसियों को अनेक प्रेरणाएं, सहायताएँ, सुविधाएँ एवं सेवाएँ उपलब्ध करवाते

(v) पहचान (Identification)—समाज में उद्यमी योग्यताओं एवं क्षमताओं की पहचान हेतु विकसित प्रणाली के द्वारा भी उद्यमियों को रचनात्मक कार्यों की ओर प्रवृत्त किया जा सकता है। विभिन्न क्षेत्रों में भावी उद्यमियों की पहचान पर ही आर्थिक विकास की गति निर्भर करती है।

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